शनिवार, 1 जुलाई 2017
बदबू (लघुकथा)
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उसे ऑफिस जाने के लिए देर हो रही थी। जल्दी से कमरे में ताला लगाकर वह सड़क पर आया। बाहर बारिश हो रही थी। अपना छाता खोलकर वह कीचड़ से बचते हुए स...
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शनिवार, 8 मार्च 2014
लडकियाँ खुश हैं (?)
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वि श्व महिला दिवस पर दो झलकियाँ: 'एक' वह लड़की अपने भाई-बहनों में सबसे होशियार थी. बचपन से पढाई में अव्वल थी. नृत्य, संगीत और ...
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मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014
कहीं तो होगी वो दुनिया
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क हीं तो होगी वो, दुनिया जहाँ तू मेरे साथ है.... जहाँ मैं, जहाँ तू और जहाँ बस तेरे-मेरे ज़ज्बात हैं... लड़के ने गुनगुनाना शुरू किया ही था ...
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रविवार, 24 नवंबर 2013
एक नयी शुरुआत
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को ई सात साल पहले मैं हिंदी ब्लॉग जगत से परिचित हुआ था। पढ़कर खुद भी ब्लॉगिंग करने की इच्छा हुई तो मैंने भी ब्लॉग बना लिया। तब कबीर का एक प...
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गुरुवार, 17 मार्च 2011
उल्टा है जमाना उल्टे चलो
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एक थे बाबाजी। फक्कड़ टाइप के थे, जंगल में रहते थे। इनका नियम था कि रोज सुबह उठते ही डटकर भोजन करते थे। इसके बाद स्नान करते थे फिर दातुन आदि ...
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शनिवार, 5 मार्च 2011
तेरा क्या और मेरा क्या?
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अस्सी और नब्बे के दशक में दूरदर्शन में ऐसे अनेक कार्यक्रम आया करते थे जिन्हें याद करके किसी का भी नॉस्टेलजिक हो जाना स्वाभाविक है । मेरा...
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