हिन्दी चिट्ठा जगत के सभी रथियों - महारथियों को मेरा प्रणाम. आप सभी की प्रेरणा से मैं भी अपने चिट्ठे की शुरुआत कर रहा हूँ. हिन्दी चिट्ठा जगत से मेरा परिचय अधिक पुराना नहीं है, कुछ दिनों पहले ही मैंने इस चमत्कारिक संसार को देख्नना शुरु किया है. अभी तक विस्मित हूँ. मैं स्वयं भी हिन्दी प्रेमी हूँ इसलिये हिन्दी को अंतर्जाल (इंटरनेट) पर देखकर बहुत खुशी होती है, और आज मेरा यही प्रयास है कि मैं भी इस परिवार का हिस्सा बन जाऊँ.
हिन्दी के इस प्रसार पर प्रसन्नता तो हुई ही पर साथ ही मन में एक प्रश्न भी उठा. क्या भविष्य में पुस्तकों का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा और ई-बुक्स ही रह जायेंगे? क्या छपे हुये पन्नों का स्थान कम्प्युटर स्क्रीन ले लेगा? कहा जाता है कि पुस्तकें मनुष्य कि सबसे अच्छी मित्र होती हैं मैं स्वयं भी यही मानता हूँ- किताबों से बचपन से ही लगाव रहा है और बिना किताबों के जीवन कि कल्पना मैं नहीं कर सकता. इसलिये यह कल्पना मेरे लिये कुछ कष्टप्रद है.
पर तुरंत ही मुझे लगता है कि चाहे जो भी हो किताबें हमेशा से रही हैं और रहेंगी. यह अवश्य हुआ है कि पुस्तक प्रेमियों कि संख्या में पिछले कुछ अर्से से भारी गिरावट आयी है. चैनल क्रांति, इंटरनेट, मोबाइल फोन, एस एम एस और कम्प्युटर गेम्स के इस युग में किताबों से रुझान घटना स्वाभाविक है. पर फिर भी इस स्थिति को बहुत अधिक चिंताजनक तो नहीं कहा जा सकता. भले ही पुस्तक प्रेमी पहले कि तुलना में कम हुये हों पर फिर ऐसे लोगो की कमी नहीं है. जब तक पुस्तकों को प्यार करने वाले उन्हे दोस्त मानने वाले हैं तब तक पुस्तकें भी रहेंगी.
और अगर आप भी मेरी तरह पुस्तक प्रेमी हैं तो समझ सकते हैं इस सुख को. एक मनपसंद किताब, फुरसत के कुछ क्षण और एकांत- क्या यह सुख अतुल्य नहीं है? आप ट्रेन के सफ़र में, बाग में, खुली हवा में, गांव मे, शहर में, बस्ती में, जंगल में, पेड़ के नीचे, नदी किनारे गोया कि हर जगह किताबों का लुत्फ़ उठा सकते हैं.
मेरी बातों का यह आशय कदापि न समझे कि मैं चिट्ठाकारी या ई-बुक्स का विरोधी हूँ, मेरे मन में मात्र यही शंका है कहीं इससे किताबों की लोकप्रियता तो कम नहीं होगी? (मुझे उम्मीद है कि यह शंका गलत होगी) मैं बस यही चाहता हूँ कि अंतर्जाल और पुस्तकों का अंतर्संबंध और मजबूत हो. ऐसा इसलिये कह रहा हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि हिन्दी चिट्ठा जगत और हिन्दी प्रकाशन जगत दो समानांतर दुनिया की तरह हैं. ( मैं अपनी बात केवल हिन्दी तक ही सीमित रखुंगा क्योंकि अन्य भाषाओं के बारे में मुझे यह जानकारी नहीं है) हिन्दी चिट्ठा जगत में कितना कुछ घटित हो रहा है, कितनी हलचलें हैं पर एक सामान्य हिन्दी पाठक इससे नावाकिफ़ है. उदाहरण के लिये मैं अपना ही नाम दूंगा, महीने भर पहले तक मैं खुद इससे बिल्कुल अपरिचित था. कारण- हिन्दी की पत्र- पत्रिकाओं में इस बारे में कोई चर्चा नहीं होती (कम से कम मैने तो नही देखी) इसी तरह चिट्ठाजगत में भी नई पुस्तकों और पत्र- पत्रिकाओं की बातें नहीं होती.
इस बारे में कुछ और बातें या कहिये अपने विचार मैं अगले चिट्ठे में कहने की कोशिश करुंगा. फ़िलहाल आप लोगो की प्रतिक्रियाओं का मुझे इंतज़ार रहेगा. मैं अब तक इस दुनिया से भले ही दूर रहा पर अब प्रयास करुंगा कि इस माध्यम से कुछ न कुछ अभिव्यक्त करता रहूँ. इसे पढ़ने वाले सभी लोगो से बस मैं यही कहना चाहता हूँ कि आप निश्चय ही इस माध्यम में अपना योगदान दें पर इस शर्त पर नहीं कि किताबें आपसे दूर हो जायें, की पेड पर उंगलियां चलाते चलाते आप कहीं कागज़ में कलम चलाना न भूल जायें.
हिन्दी के इस प्रसार पर प्रसन्नता तो हुई ही पर साथ ही मन में एक प्रश्न भी उठा. क्या भविष्य में पुस्तकों का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा और ई-बुक्स ही रह जायेंगे? क्या छपे हुये पन्नों का स्थान कम्प्युटर स्क्रीन ले लेगा? कहा जाता है कि पुस्तकें मनुष्य कि सबसे अच्छी मित्र होती हैं मैं स्वयं भी यही मानता हूँ- किताबों से बचपन से ही लगाव रहा है और बिना किताबों के जीवन कि कल्पना मैं नहीं कर सकता. इसलिये यह कल्पना मेरे लिये कुछ कष्टप्रद है.
पर तुरंत ही मुझे लगता है कि चाहे जो भी हो किताबें हमेशा से रही हैं और रहेंगी. यह अवश्य हुआ है कि पुस्तक प्रेमियों कि संख्या में पिछले कुछ अर्से से भारी गिरावट आयी है. चैनल क्रांति, इंटरनेट, मोबाइल फोन, एस एम एस और कम्प्युटर गेम्स के इस युग में किताबों से रुझान घटना स्वाभाविक है. पर फिर भी इस स्थिति को बहुत अधिक चिंताजनक तो नहीं कहा जा सकता. भले ही पुस्तक प्रेमी पहले कि तुलना में कम हुये हों पर फिर ऐसे लोगो की कमी नहीं है. जब तक पुस्तकों को प्यार करने वाले उन्हे दोस्त मानने वाले हैं तब तक पुस्तकें भी रहेंगी.
और अगर आप भी मेरी तरह पुस्तक प्रेमी हैं तो समझ सकते हैं इस सुख को. एक मनपसंद किताब, फुरसत के कुछ क्षण और एकांत- क्या यह सुख अतुल्य नहीं है? आप ट्रेन के सफ़र में, बाग में, खुली हवा में, गांव मे, शहर में, बस्ती में, जंगल में, पेड़ के नीचे, नदी किनारे गोया कि हर जगह किताबों का लुत्फ़ उठा सकते हैं.
मेरी बातों का यह आशय कदापि न समझे कि मैं चिट्ठाकारी या ई-बुक्स का विरोधी हूँ, मेरे मन में मात्र यही शंका है कहीं इससे किताबों की लोकप्रियता तो कम नहीं होगी? (मुझे उम्मीद है कि यह शंका गलत होगी) मैं बस यही चाहता हूँ कि अंतर्जाल और पुस्तकों का अंतर्संबंध और मजबूत हो. ऐसा इसलिये कह रहा हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि हिन्दी चिट्ठा जगत और हिन्दी प्रकाशन जगत दो समानांतर दुनिया की तरह हैं. ( मैं अपनी बात केवल हिन्दी तक ही सीमित रखुंगा क्योंकि अन्य भाषाओं के बारे में मुझे यह जानकारी नहीं है) हिन्दी चिट्ठा जगत में कितना कुछ घटित हो रहा है, कितनी हलचलें हैं पर एक सामान्य हिन्दी पाठक इससे नावाकिफ़ है. उदाहरण के लिये मैं अपना ही नाम दूंगा, महीने भर पहले तक मैं खुद इससे बिल्कुल अपरिचित था. कारण- हिन्दी की पत्र- पत्रिकाओं में इस बारे में कोई चर्चा नहीं होती (कम से कम मैने तो नही देखी) इसी तरह चिट्ठाजगत में भी नई पुस्तकों और पत्र- पत्रिकाओं की बातें नहीं होती.
इस बारे में कुछ और बातें या कहिये अपने विचार मैं अगले चिट्ठे में कहने की कोशिश करुंगा. फ़िलहाल आप लोगो की प्रतिक्रियाओं का मुझे इंतज़ार रहेगा. मैं अब तक इस दुनिया से भले ही दूर रहा पर अब प्रयास करुंगा कि इस माध्यम से कुछ न कुछ अभिव्यक्त करता रहूँ. इसे पढ़ने वाले सभी लोगो से बस मैं यही कहना चाहता हूँ कि आप निश्चय ही इस माध्यम में अपना योगदान दें पर इस शर्त पर नहीं कि किताबें आपसे दूर हो जायें, की पेड पर उंगलियां चलाते चलाते आप कहीं कागज़ में कलम चलाना न भूल जायें.
अंत में मैं सफ़दर हाशमी की लिखी एक कविता यहाँ दे रहा हूँ जो यूँ तो बच्चों के लिये लिखी गई है पर फिर भी मुझे अत्यंत प्रिय है, काफी समय से. आप भी पढ़िये.
किताबें
किताबें
करती हैं बातें
बीते जमानों की
आज की, कल की
एक एक पल की
खुशियों की, ग़मों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की मार की
क्या तुम नहीं सुनोगे
इन किताबों की बातें ?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं
किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं
किताबों में खेतियां लहलहाती हैं
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं
किताबों में रॉकिट का राज है
किताबों में में साइंस की आवाज़ है
किताबों का कितना बड़ा संसार है
किताबों में ज्ञान की भरमार है
क्या तुम इस संसार में
नहीं जाना चाहोगे ?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं
चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है सोमेश,
जवाब देंहटाएं"किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं"
बहुत ही सुन्दरता से आपने किताबों की उपियोगिता को काव्य में पिरोया है, उम्मीद अब आप नियमित लिखते रहेंगे...
बधाई एवं शुभकामनाएँ!!!
सोमेश भाई,
जवाब देंहटाएंस्वागत है हिन्दी चिट्ठाकारी में। आपसे निवेदन है कि नारद पर अपने चिट्ठे को पंजीकृत कराएं।
लिंक : http://narad.akshargram.com/register/
जोशी जी एवं जीतेन्द्र जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद्. मैने नारद में पंजीकरण कर लिया है.
जवाब देंहटाएंसुस्वागतम सोमेश जी ! चिट्ठाकारिता एक व्यक्तिगत भावनाओं का प्रकट करने का एक जरिया है जिसके लिए ना किसी की अनुमति की आवश्यकता है ना ही किसी प्रकाशक को ढ़ूंढ़ने का झंझट । हिंदी में नेट पर हो रहा लेखन धीरे धीरे अपने पांव पसार रहा है । वो दिन दूर नहीं जब हिंदी प्रिंट मीडिया इसके बढ़ते वजूद को पहचानेगा ।
जवाब देंहटाएंजानकर खुशी हुई कि आप किताबों से प्रेम रखते हैं । बकौल गुलजार
किताबों से कभी गुजरो तो यूँ किरदार मिलते हैं
गये वक्तों की ड्योढ़ी पर खड़े कुछ यार मिलते हैं
जिसे हम दिल का वीराना समझ छोड़ आए थे
वहीं उजड़े हुए शहरों के कुछ आसार मिलते हैं
नई पुरानी किताबों पर चिट्ठों पर भी लिखा जाता रहा है । कूछ किताबों के बारे में यहाँ लिखा था । समय हो तो अपनी राय से अवगत कराएँ
http://manishkmr.blogspot.com/2005/04/kitabein-bolti-hain.html
आशा है आप की समीक्षाएँ हमें भविष्य में पढ़ने को मिलेंगी ।
सोमेश सबसे पहले तो आपका स्वागत है चिट्ठाजगत की इस मायावी दुनिया में, आप शुरु तो कीजिए जहाँ आपको एक बार लत लगी, छूटे न छूटेगी। :)
जवाब देंहटाएं"कुछ दिनों पहले ही मैंने इस चमत्कारिक संसार को देख्नना शुरु किया है. अभी तक विस्मित हूँ."
गूंगे की भाषा गूंगा जाने, हिन्दी चिट्ठाजगत के बारे में जानकर आपकी क्या मनोदशा हुई होगी, मैं ही समझ सकता हूँ, आपकी और मेरी कहानी बिल्कुल एक जैसी है। यहाँ पढ़िए
मेरी भी अक्सर किताबों और ई-बुक्स की तुलना संबंधी चर्चा अपने एक सहकर्मी से होती रहती है, मेरा तो ये मानना है कि दोनों का अपना महत्व है।
"हिन्दी चिट्ठा जगत में कितना कुछ घटित हो रहा है, कितनी हलचलें हैं पर एक सामान्य हिन्दी पाठक इससे नावाकिफ़ है. उदाहरण के लिये मैं अपना ही नाम दूंगा, महीने भर पहले तक मैं खुद इससे बिल्कुल अपरिचित था."
मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही था, अगस्त के आसपास से मुझे हिन्दी चिट्ठाजगत की खबर लगी तो मुझे हैरानी हुई कि तीन साल से नेट प्रयोग करने पर भी मुझे इतनी देर में क्यों पता लगा।
ध्न्यवाद मनीष जी, आपने मेरा लिखा पढ़ा इसके लिये हृदय से आभारी हूँ | गुलजार की बहुत खूबसूरत पंक्तियां आपने दी हैं | आपके चिट्ठे पर मैं जरूर रायशुमारी करुंगा | और निरंतर लिखते रहने की कोशिश करुंगा |
जवाब देंहटाएंश्रीश जी धन्यवाद | आप जो मुझे पढ़ाना चाहते हैं मैं पहले ही पढ़ चुका हूँ | यकीन मानिये उसे पढ़ते हुये मुझे लगा था कि ये तो मेरी कहानी है | यदि मैं कहूँ कि अपना चिट्ठा शुरू करने की सबसे बड़ी प्रेरणा मुझे आपसे मिली तो यह गलत नहीं होगा | अपने चिट्ठे को नयी जगह स्थानांतरित करके आपने जो कुछ भी कहा था उसे पढ़कर मेरी इच्छा बलवती हो गयी थी | आपको अपने चिट्ठे में देखकर मुझे बहुत खुशी हुई | आप जिस लत की बात कर रहे हैं मैं उसे अभी से महसूस कर रहा हूँ |
जवाब देंहटाएंसोमेश जी, आशा है आगे भी आप अपने विचारों से अवगत कराते रहेंगे.शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंसोमेश जी,
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिखा है ।
स्वागत और बधाई ॥
इस दुनियाँ में जो नवीन है आपके लिए स्वागत है!!
जवाब देंहटाएंकिताब के संदर्भ मे आपके विचार उत्तम हैं पर इस भागती दुनियाँ के पास मौका कहाँ है किताब पढ़ने का…वैसे भी भारत देश में एक सर्बे के अनुसार दिन-प्रतिदिन साहित्य पढ़ने वाले कमते जा रहे हैं हिंदी तो कोई पढ़ता ही नहीं है…मैं जब पुस्तक मेला में जाता हूँ तब साहित्य अकादमी,राज कमल,ज्ञान पीठ को देख कर बहुत दु:ख होता है इक्के-दुक्के लोग नजर आते है…।
सोमेश भाई,आपका स्वागत है हिंदी चिट्ठाजगत में। किताबें पढ़ी जा रही हैं और खूब पढ़ी जा रही हैं। इनके बारे में लिखा भी जा रहा है। बल्कि यहां आपस में बातकरने और पढ़ने के बाद लोगों ने किताबें खरीद कर पढ़ीं भी हैं। आप भी जो किताबें पढ़ें उनकी चर्चा करें! नेट की दुनिया से किताबों की दुनिया दूर नहीं होगी यह पक्का है!
जवाब देंहटाएंरचना जी, रीतेश जी, divine india और अनुप जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद | divine india साहब किताबों को लेकर इतने दुखी भी न होइये | यदि आप में रुचि है तो किताबों को पढ़ने लिये मौकों की कमी नहीं है | और जैसा कि मैने कहा कि स्थिति इतनी चिंताजनक भी नहीं है |
जवाब देंहटाएंअनुप जी आपने जो भरोसा दिलाया है उससे मुझे बहुत खुशी हुई है | मैं किताबों की चर्चा करता रहूँगा |
स्वागत है हिंदी चिट्ठाजगत में। किताबी चर्चा का इंतजार रहेगा.
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ...
धन्यवाद समीर लाल जी |
जवाब देंहटाएंहुन्दी चिट्ठे जगत में आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट फायर फौक्स में अच्छी नहीं दिख रही है लगता है कि आपने इसे justify कर के प्रकाशित किया है इसे left align कर प्रकाशित करें।
उन्मुक्त जी, आपका धन्यवाद | मैने justify यह सोचकर किया था कि अच्छा दिखेगा, फायर फौक्स में यह अच्छा नहीं दिखता मुझे पता नहीं था क्योंकि मैंने तो कभी फायर फौक्स का प्रयोग किया नहीं है | अब इसका ध्यान रखुंगा |
जवाब देंहटाएंस्वागत है सोमेश जी...
जवाब देंहटाएंकिताबें जिन्हे पढनी थीं पहले वो पढते थे, आज जो पढ पा रहे हैं पढ़ ही रहे हैं । पुस्तक मेलों मे २०% रियायत के बाद भी यदि पुस्तकें १०० रुपये से नीचे नहीं मिल रहीं तो कैसे कोई मध्यम वर्गीय खरीद कर पढ सकता है । पुस्तकलयों मे अब भी लोग जाते हैं(जिन्हे जाना है, जो जाना चाहते हैं, पर वो जिन्हे जाना चाहिये वो कम से कम हिन्दी पढने तो नहीं ही जा रहे हैं ।)
कागज पर छपे शब्द अपना अस्तित्व बचाकर रख सकें ये विचार का प्रश्न है, इंटरनेट खतरा नहीं साथी बन सके, इसके लिये हमे जागरुक रहना होगा ।
जिस कमी के बारे मे आपने इंगित किया वो मुझे भि लगती रही है, यहां हिन्दी ब्लाग्स में.... यह दुनिया उस दुनिया से काफ़ी हद तक(अधिकतर ब्लोग्स हैं..) अनभिज्ञ सी है...आपसे आशा रहेगी कि इस कमी को पूरा करें ।
रवीन्द्र जी, धन्यवाद | आप की बातें सच है पर आप मुझसे कुछ बडी आशा नहीं कर रहे हैं ? मैं अकेला इस कमी को कैसे पूरा कर सकता हूँ ? हाँ हम सब मिलकर जरुर कर सकते हैं | इस संबंध में मेरे कुछ सुझाव हैं जिन्हे में अपने अगले चिट्ठे में प्रेषित करुंगा |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद श्रद्धा जी | यदि आप यह टिप्प्णी देवनागरी में देतीं तो मुझे और खुशी होती |
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत है, अगली कडी का इन्तजार है।
जवाब देंहटाएंआज के समय में जब हमारी बोल-चाल और काम-काज सभी पर अंग्रेजी हावी है, ऐसे समय में अंतरजाल पर हिन्दी और हिन्दी के सक्रिय चिठ्ठे देख कर खुशी नहीं होती ? बहुत होती है और यह हिन्दी का प्रचार भी करता है ताकि ज्यादा से ज्यादा हिन्दी भाषी अपनी भाषा से जुडे़ रह सकें । और जो वास्तव में किताब-प्रेमी हैं वह सभी कहेंगे कि किताबों का स्थान ई-पुस्तकें नहीं ले सकतीं - किताबों का अपना अलग ही स्थान है ।
जवाब देंहटाएंप्रेमेन्द्र जी एवं सीमा जी, बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसोमेश जी, मैंने देखा है कि आप पूर्णविराम के लिए '।' की बजाय '|' का प्रयोग करते हैं। आप कौन सा IME उपयोग कर रहे हैं ?
जवाब देंहटाएंबारहा में पूर्णविराम के लिए Shift+\ दबाइए(बैकस्पेस के बाईं तरफ की कुँजी)
हिन्दीराइटर में . दबाइए।
इंडीक IME में मेरे ख्याल से शायद पूर्णविराम का निशान होता ही नहीं।
सोमेश भाई, किताबों पर हाशमी जी की यह कविता बहुत ही सुंदर है। किताब पढ़ने मे जो आनंद है वह ई-बुक्स में नहीं। वैसे भी इंटरनेट पर हिन्दी साहित्य ई-बुक्स के रुप मे ज्यादा उपलब्ध नही है।
जवाब देंहटाएंआपकी तरह ही मै भी चिठ्ठा जगतसे कुछ महीने पहले तक अनजान ही था,ठीक श्रीश भाई की तरह पिछले पांच साल से इंटरनेट उपयोग कर रहा था लेकिन हिन्दी चिठ्ठा जगत को जाना सिर्फ़ दो महीने पहले, और जब जाना तो…नतीजा आपके सामने ही है, खैर, आप लिखते रहें और हम आपका लिखा पढ़ते रहें, इन्ही शुभकामनाओं के साथ
संजीत जी, मेरा पोस्ट पढ़ने और पसंद करने के लिये धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसोमेश जी..आपका ब्लोग आज ही देखा । लेख पढ नही पाया क्योंकि फायरफ़ाक्स पर सही नही दिख रहा । किताबों से हमें भी बहुत मुहब्ब्त है और पक्के किताबी कीडे हैं ।
जवाब देंहटाएंवैसे ये भी गौर कीजियेगा :
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो ।
जिन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो ॥
;)