लीलाधर जगूड़ी समकालीन हिन्दी साहित्य के प्रमुख और प्रतिनिधि कवि हैं. उनकी एक कविता जो मुझे बहुत प्रिय है अनायास याद आ रही है. चूँकि कई बार रचना रचनाकार से ज्यादा महत्वपूर्ण होती है और यहाँ मेरा उद्देश्य कविता को सामने लाना है कवि को नहीं, इसलिए कवि का परिचय दिए बिना मैं सीधे कविता ही दे रहा हूँ.
थोड़ी सी श्रद्धा | थोड़ी सी मातृभूमि | थोड़ी सी राष्ट्रभक्ति से भरे
जो मनुष्य मिलते हैं हमेशा मुझे संशय मे डाल देते हैं.
बहुत सी श्रद्धा | बहुत सी मातृभूमि | बहुत सी राष्ट्रभक्ति वाले भी
मुझे कहीं न कहीं क़ैद कर देना चाहते हैं.
श्रद्धा जो अतार्किक आस्था है
आस्था जो तर्कातीत स्थिति है
मातृभूमि जो राजनीतिक परिसीमन है
और राष्ट्रीयता जो कि भौगोलिक जाति है
मुझे इस बहुत बड़े विश्व में अकेला कर देने के लिए काफी है
सीमित नागरिकता के बावजूद मेरे पास असीम राष्ट्र है
और असीम मातृभूमि
मुझे आल्पस से भी उतना ही प्यार है जितना हिमालय से
हम जितने ही मिश्रित होंगे
उतने ही कम अकेले और कम खतरनाक होंगे.
-लीलाधर जगूड़ी
मिलाप
थोड़ी सी श्रद्धा | थोड़ी सी मातृभूमि | थोड़ी सी राष्ट्रभक्ति से भरे
जो मनुष्य मिलते हैं हमेशा मुझे संशय मे डाल देते हैं.
बहुत सी श्रद्धा | बहुत सी मातृभूमि | बहुत सी राष्ट्रभक्ति वाले भी
मुझे कहीं न कहीं क़ैद कर देना चाहते हैं.
श्रद्धा जो अतार्किक आस्था है
आस्था जो तर्कातीत स्थिति है
मातृभूमि जो राजनीतिक परिसीमन है
और राष्ट्रीयता जो कि भौगोलिक जाति है
मुझे इस बहुत बड़े विश्व में अकेला कर देने के लिए काफी है
सीमित नागरिकता के बावजूद मेरे पास असीम राष्ट्र है
और असीम मातृभूमि
मुझे आल्पस से भी उतना ही प्यार है जितना हिमालय से
हम जितने ही मिश्रित होंगे
उतने ही कम अकेले और कम खतरनाक होंगे.
-लीलाधर जगूड़ी