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मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

कहीं तो होगी वो दुनिया

हीं तो होगी वो, दुनिया जहाँ तू मेरे साथ है....
जहाँ मैं, जहाँ तू और जहाँ बस तेरे-मेरे ज़ज्बात हैं...

लड़के ने गुनगुनाना शुरू किया ही था कि लड़की ने टोक दिया- "यह गाना मत गाओ, यह तुम्हारे लिए नहीं है, किसी और के लिए है."

"मतलब..."

"मतलब यह कि यह गाना सुनकर मुझे किसी और की याद आती है,"

"तुम अभी तक भूल नहीं पायी उसे?"

"कोशिश तो कर रही हूँ न, इतना आसान नहीं है तुम भी जानते हो... जब उसने मुझे छोड़कर किसी और से शादी की थी तो मैं बस यही गाना सुनती रहती थी और रोती रहती थी" कहते- कहते लड़की सच में रुआंसी हो गयी.

लड़के ने लड़की के हाथ को अपने हाथ में लिया और कहा- "चिंता मत करो, अब मैं हूँ न तुम्हारी ज़िन्दगी में. भूल जाओगी उसे धीरे- धीरे."

लड़की ने मुस्कराने की कोशिश की, "हाँ, शायद भगवान ने तुम्हे मेरे लिए ही बनाया है. पर प्रोमिस करो आज के बाद तुम मेरे सामने यह गाना नहीं गाओगे."

"ठीक है जान."

********

"सुनो, मुझे तुमसे कुछ कहना है." लड़की ने बहुत गंभीरता से कहा.

"क्या?" लड़के का दिल जाने किस डर से तेज़ी से धड़कने लगा.

 "तुम मुझे भूल जाओ, अब न कभी मुझसे फ़ोन पर बात करना और न कभी मुझसे मिलने की कोशिश करना."  लड़की ने आँखें चुराते हुए कहा.

"पर क्यों, ऐसा क्या हो गया अचानक?" लड़के को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ.

"मैं खुद को और धोखा नहीं दे सकती अब. सच तो यह है कि मैं उसे आज तक नहीं भूल पायी और न कभी भूल पाउंगी."

"क्या?"

"हाँ, मैं हमेशा तुम्हारे अन्दर उसे ही खोजती रही हूँ. तुम्हारी हर बात, हर चीज़ मुझे उसी की याद दिलाती है. ऐसा लगता है तुम नहीं वो मेरे साथ है."

"पर इसमें मेरी क्या गलती है? मैं तो उसे जानता भी नहीं. कभी मिला भी नहीं. मैंने तो हमेशा यही कोशिश की है कि तुम उसे भूल जाओ."

"गलती तुम्हारी नहीं मेरी है. मुझे लगा था कि कोई और मेरी ज़िन्दगी में आएगा तो शायद उसे भूल जाउंगी. पर सच तो यह है कि अब शायद मैं किसी और से प्यार नहीं कर पाउंगी."

"ऐसा क्यों सोचती हो, तुम जरुर भूल जाओगी. अभी दिन ही कितने हुए हैं?"

"इतना कम समय भी नहीं हुआ है. पता है आज भी मेरे पर्स में उसकी फोटो है, वो सारी चीज़े जो उसने मुझे गिफ्ट की थी मैंने आजतक संभाल कर रखी हैं. रोज उन्हें उलट पुलट कर देखती हूँ. वो सारे लम्हे याद करती रहती हूँ जो मैंने उसके साथ गुजारे थे."

लड़का अवाक था,कुछ नहीं बोल पा रहा था.

लड़की ने बोलना जारी रखा - "जिस तरह उसने मुझे ठुकराया मुझे उससे बेहद नफ़रत होनी चाहिए. मैं करती भी हूँ.... करना चाहती हूँ.... लेकिन शायद... शायद अब भी उससे बहुत प्यार करती हूँ. मेरे दिल के किसी कोने मैं अब भी एक उम्मीद है कि वो वापस मेरे पास आएगा. पर मैं जानती हूँ कि यह असंभव है." लड़की के आँखों में आंसू थे और होंठो पर फीकी सी मुस्कान.

"पर मेरा क्या होगा? याद है तुम ही मुझे अपनी ज़िन्दगी में लेकर आई हो और जब मैं तुम्हे इतना प्यार करने लगा हूँ कि तुम्हारे बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता तब तुम मुझे दूर जाने को कह रही हो."

"आय एम सॉरी फॉर देट, पर मैं एक झूठ के सहारे नहीं जी सकती. तुम एक अच्छे लड़के हो पर मैं तुमसे प्यार नहीं करती हूँ. बहुत सोचने के बाद मैंने यह जाना है."

"एक बार फिर सोच लो." अब लड़के की आँखों में भी आंसू थे.

"यह मेरा फ़ाइनल डिसिज़न है. मैं उम्मीद करती हूँ कि तुम्हे मुझसे भी अच्छी कोई लड़की मिल जाएगी जो तुम्हे बहुत खुश रखेगी."

"तो क्या हम दोस्त भी नहीं रह सकते?

"नहीं !"

"कभी भी अगर तुम्हारे विचार बदलें या मेरी कोई जरुरत हो तो प्लीज मुझे फोन करने में जरा भी नहीं हिचकिचाना." लड़के की आवाज़ भारी हो गयी थी

"प्लीज ऐसी कोई उम्मीद मत रखो. यह हमारी आख़िरी मुलाक़ात है और आज के बाद हम कभी बात भी नहीं करेंगे."

********

कहीं तो होगी वो, दुनिया जहाँ तू मेरे साथ है...

अभी गाना बजना शुरू ही हुआ था कि लड़का चीख पड़ा-  "बंद कर इसे"

"अरे, क्या हुआ?" उसके दोस्त ने पूछा.

"प्लीज यार कोई और गाना सुन ले. यह गाना सुनकर मुझे किसी की याद आती है...."
 

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

प्रेम में डूबी हुई लड़की की ब्लॉग कथा

कथासूत्र को समझने के लिए इस कहानी को पढ़ने से पूर्व इसकी पूर्वकथा को पढ़ना उचित रहेगा।
लड़की अब पूरी तरह प्रेम में डूब चुकी थी।

वह दिन रात लड़के के ही ख्यालों में खोई रहती। उसने अब प्रेम कवितायेँ लिखना शुरू कर दिया था। प्रेम और खुशियों की कविताएँ। दोनों अक्सर मिला करते। देर तक बातें करते और साथ में सपने बुनते। सपने, जो अब दोनों के साझा सपने थे। अब दोनों ब्लॉग की सीमा से भी परे हो गए। ब्लॉग के बाहर भी दोनों ने मिलना शुरू कर दिया। लड़का लड़की को उन सभी जगहों पर लेकर जाता जहाँ वो जाना चाहती थी और वे सारी चीज़ें दिखाता जो वो देखना चाहती थी। लड़का लड़की को अपने ब्लॉग पर भी लेकर गया। अपनी रचनात्मकता से भी उसे परिचित कराया।

इस तरह लड़की के पास खूबसूरत लम्हों का खजाना  इकठ्ठा होता गया। जब लड़का उसके साथ नहीं होता तो वो इस खजाने की पोटली को खोलती और एक एक लम्हे को याद करके फिर से जीती।

एक दिन लड़के ने लड़की से कहा के वो उससे एकांत में मिलना चाहता है।
"कहाँ?" लड़की ने पूछा।
"कहीं भी" लड़के ने कहा।
"तुम्हारे घर?"
"नहीं, वहाँ नहीं मिल सकते।"
"फिर?"
"फिर जहाँ भी तुम ले चलो।"

फिर लड़की ने अपने सपनों के संसार में एक सपनों का घर बनाया, ब्लॉग से बाहर। लड़की ने उसे नाम दिया - हमारा घर। दोनों उसी सपनों के घर में मिले और वहीं प्रथम बार लड़के के अधरों ने लड़की के अधरों को स्पर्श किया। लड़की असीम सुख में डूब गयी। और वही घर उन दो प्रेम में डूबे देहों के मिलन का गवाह भी बना। लड़की को लगा के अब उसने अपने होने का अर्थ पा लिया है। उसे लगा के अब वो मर भी जाये तो उसे कोई दुःख नहीं होगा। दोनों अब भावनात्मक, वैचारिक, रचनात्मक और दैहिक हर स्तर पर प्यार में डूब चुके थे।

काफी दिनों तक दोनों का प्रेम यूं ही चलता रहा। एक दिन लड़के ने लड़की से कहा कि अब तुम्हे कहानियाँ लिखना चाहिए। लड़की ने लड़के के कहने पर लिखी एक प्रेम कहानी। लड़के ने कहानी की प्रशंसा की और कहा कि इसे आगे बढ़ाओ। तुम्हारा मूल ध्येय सृजन करना है। इसके लिए यदि कुछ त्याग भी करना पड़े तो कोई बात नहीं लिखती रहो। लड़की सम्मोहित हो गयी। लड़का चला गया और लड़की अपने सपनों के घर में बैठकर लिखने लगी।

लड़की अकेले में बैठकर कहानी लिखती और लड़के का इंतजार भी करती रहती। लड़का शाम को आता लड़की का लिखा पढ़ता, तारीफ करता और लड़की को प्यार करता फिर वापस लौट जाता।  लड़की फिर से लिखने बैठ जाती। वो लिखती क्योंकि लड़का पढता।  लड़के का पढ़ना लड़की के लिखने को सार्थक कर जाता। धीरे धीरे लड़के ने आना भी कम कर दिया। अब वो दो-तीन दिन में एक बार आने लगा। लड़की के कहने पर वो कहता कि वो नहीं चाहता कि उसके आने से लड़की का कार्य बाधित हो। लड़की ने प्रेम की खातिर यह भी स्वीकार कर लिया।

एक बार ऐसा हुआ कि लड़का चार तक भी नहीं आया। लड़की को लड़के की बहुत याद आ रही थी पर उसे लगा शायद लड़का व्यस्त होगा। अगले दिन भी लड़का नहीं आया तो लड़की को चिंता  होने लगी। उसने लड़के से संपर्क करना चाहा पर ये भी न हो पाया। लड़की ने फिर भी इंतजार किया पर लड़का अगले दिन भी नहीं आया। अब लड़की की चिंता और बढ़ गई। लड़के के बिना उसे रहा भी नहीं जा रहा था। वो निकल पड़ी लड़के को ढूँढने। सबसे पहले लड़की अपने ब्लॉग पर गई उसी बेंच पर जहाँ वो उससे पहली बार मिली थी। लड़का वहाँ नहीं था। फिर लड़की उन सभी जगहों पर भटकती रही जहाँ जहाँ वो लड़के के साथ गई थी। पर लड़का कहीं भी नहीं मिला।

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

एक अकेली और उदास लड़की की ब्लॉग कथा

वह लड़की अकेली थी। अकेली और उदास। कोई साथी नहीं था उसका। अकेले अपने कमरे में बैठे बैठे सपने बुना करती थी। सपने जिनके सच होने की उम्मीद भी उसने छोड़ दी थी। वो चाहती थी कोई उसके साथ बात करे, उससे झगड़े, उसे मनाए, उसे बहलाए, उसके सपने सुने पर कोई नहीं था जो ये सब करता।

एक दिन उसे ब्लॉग के बारे में पता चला, उसने सोचा चलो जी बहला रहेगा और उसने एक ब्लॉग बना लिया। ब्लॉग में उसने अपने सपनों को सजाना शुरू कर दिया। अपनी कल्पना और रचनात्मकता से उसने ब्लॉग मे ही अपनी दुनिया बना ली।

उसने ब्लॉग में एक झील बनाई, झील के किनारे पहाड़ बनाया, झील के दुसरे सिरे में एक सुन्दर पार्क बनाया और उस पार्क में एक बेंच बनाई। उस बेंच पर बैठकर वो झील और पहाड़ के खूबसूरती को निहारा करती और सोचा करती। सोचा करती अपने अकेलेपन के बारे में, अपनी उदासी के बारे में और अपने जीवन के बारे में। सोचते सोचते उसने इन पर कविता लिखना शुरू कर दिया। उन कविताओं को भी उसने अपने ब्लॉग पर सजाना शुरू कर दिया। अपने सपनों के ब्लॉग में, सपनों की झील किनारे, सपनों के पार्क में, सपनों के बेंच में बैठ वह उन कविताओं को गुनगुनाया करती।

एक दिन जब वह अपनी एक कविता गुनगुना रही थी एक लड़का उसके पास आकर उसकी कविता सुनने लगा। लड़की ने जब कविता ख़त्म की तो लड़के ने ताली बजाई और उसकी प्रशंसा की। लड़की झेंप गई. उसने लड़के को देखा। लड़का उसी के उम्र का था। सुकुमार सा। उसके चेहरे पर कोमल भाव थे। लड़की को वो बिलकुल अपना सा लगा।  लड़का लड़की के पास ही बैठ गया। लड़के ने लड़की के कविता की तरीफ़ की। लड़की ने शुक्रिया कहा। लड़के ने बताया कि उसका भी एक ब्लॉग है और वह घूमते घूमते यहाँ आ गया। दोनो बैठकर बातें करने लगे। लड़के ने लड़की को अपनी कविताएं सुनाई। लड़की को पसंद आईं। दोनो देर तक बातें करते रहे। एक दूसरे के बारे में जानते रहे। लड़की को लड़के से बात करना बहुत अच्छा लगा।

अब दोनो अक्सर वहाँ मिलने लगे। मिलते और घंटों बातें करते। लड़की को लड़के का साथ बहुत अच्छा लगता। उससे बात करते हुए उसे लगता के समय थमा रहे। पर समय नहीं थमता और लड़की के अपने ब्लॉग से निकलकर अपने कमरे में जाने का समय हो जाता। फिर मिलने का वादा करके दोनो विदा होते। लड़की अब खुश रहने लगी। उसे सबकुछ अच्छा लगने लगा। उसने अब उदासी और अकेलेपन की कविताएं लिखना छोड़ दिया।