इस तरह हुई नए साल की शुरुआत...
कुछ व्यस्तताओं की वजह से यह लेख कुछ देर से पोस्ट कर रहा हूँ।
हम और आप रोज काम पर जाते हैं और वही रूटीन काम रोज करते हैं। पर सोचिये किसी दिन आप अपने कार्यस्थल पर जाएं और काम के बजाए पिकनिक करें तो कैसा रहेगा? हो सकता है आप मैं से कई लोगों के लिए ये आम बात हो पर अपने लिए तो कुछ असामान्य सा है। कुछ ऐसे ही बीता मेरा नववर्ष का पहला दिन।तो इस दिन की प्लानिंग तो पहले ही चल रही थी, हमें कहा गया था कि पहली जनवरी को सारे स्टाफ मेम्बरान साँची घूमने जायेंगे पर एक दिन पहले ही पता चला की ये कार्यक्रम निरस्त हो गया है। हमारे संस्थान में ऐसा होता रहता है। खैर इस दिन बच्चों की छुट्टी कर दी गई और हम सब से कहा गया कि कॉलेज केम्पस में पार्टी होगी। तो सुबह कॉलेज पहुंचे। सारे लोग मुख्य ईमारत के सामने इकट्ठा हुए और फिर एक दूसरे को शुभकामनाएँ देने का सिलसिला शुरु हुआ। जिन लोगो से मेरी कभी बातचीत नहीं हुई थी (विभाग अलग होने की वजह से, मैं फार्मेसी विभाग में पढ़ाता हूँ) उनसे भी गले लग लग कर शुभकामनाएँ ले-दे रहा था।
खैर कुछ देर तक ये सिलसिला चलता रहा फिर पता चला कि आज सब भोजपुर जाने वाले हैं। चलिये ये भी सही है। तो साहब सारे टीचिंग और नॉन टीचिंग फेकल्टी मेम्बर ( हमारे बीच यही पॉपुलर है इसलिये हिन्दी तर्ज़ुमा नहीं कर रहा हूँ) संस्थान की तीन बसों मे भरकर निकले। लगभग सवा सौ लोग थे। रास्ते में इंजीनियरिंग, फार्मेसी और मेनेजमेंट के शिक्षकगण और अन्य कर्मचारी बच्चों की तरह हल्ला करते जा रहे थे।
जो लोग भोजपुर के बारे में नही जानते उनके लिए बता दूँ कि भोजपुर भोपाल से लगभग ३२ कि. मी. दूर एक दर्शनीय स्थल है। यहाँ बेतवा नदी के तट पर एक पहाड़ी में राजा भोज द्वारा बनवाया हुआ एक दसवी शताब्दी का शिव मंदिर है। किन्ही कारणों से मंदिर का निर्माण अधूरा रह गया। सबसे खास बात है यहाँ का शिवलिंग जिसके बारे में कहा जाता है कि यह विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग है (योनिपट्ट सहित २२ फीट ऊँचा)। वैसे राजधानीवासियों के बीच यह जगह धार्मिक स्थल से ज्यादा पिकनिक स्पॉट के रूप में मान्य है।
तो दोपहर तक हम सब वहाँ पहुंचे। वहाँ देखा तो मेला सरीखा लगा रखा था। काफी लोग वहाँ आये थे। कुछ स्कूलों के बच्चे भी पिकनिक मनाने आए हुए थे। शायद नये वर्ष के पहले दिन लोग मंदिर जाकर दर्शन करना शुभ मानते हैं और यहाँ दर्शन के साथ घूमना फिरना भी हो जाता इसलिए इतने लोग आज यहाँ नज़र आ रहे हैं।
तो भैया पहले तो हम अपने दो चार मित्रों के साथ मंदिर में दर्शन कर आए फिर घूमना शुरु किया। बेतवा नदी के किनारे पहुंचे, ऊपर चट्टान से नीचे घाटी का नजारा लिया। नदी में पानी कम है और ठहरा हुआ है, इसलिए तालाब सा लगता है। ज्यादातर नदियों की अब यही स्थिति रह गई है। छोटी नौका में लोग बोटिंग का लुत्फ़ ले रहे थे। वहाँ काले मुंह वाले बंदर भी खूब थे। लोगो को डरा कर उनकी खाने की चीज़ें (अमरूद, लड्डू आदि) छीन लेते हैं और फिर आपस में छीना झपटी मचाकर निपटा देते हैं।
दो इस तरह घूमते फिरते काफी वक्त बीत गया। तेज भूख लगने लगी थी। नीचे छोटा सा बाज़ार सा लगा हुआ था जहाँ पूजन सामग्री सहित ढ़ेर सारी वस्तुएं बिक रहीं थीं वहीं एक दुकान से कचोड़ियाँ खायीं। लेकिन इससे क्या होता है? वैसे कॉलेज वालो ने भोजन की व्यवस्था भी की थी (यह एक और सुखद आश्चर्य था)।
तो वहाँ से सब लोग एकत्रित होकर मंदिर कुछ दूर स्थित एक जैन मंदिर गए। वो भी मनोरम सी जगह है खुली सी। उद्यान भी है। वहीं पर एक जैन परिवार भोजनालय चलाता है। यहाँ दाल-बाफले का ऑर्डर पहले ही दे दिया गया था। भोजनालय के बगल में काफी खुली सी जगह थी वहीं टाटपट्टियाँ बिछाकर सबको बैठाया गया और दाल बाफले खिलवाए गए। खाना दो पालियों में हुआ, हम दूसरी पाली में बैठे। तब तक साढ़े चार बज गए थे। बहुत भूख लगी थी। इसलिए दाल और कढ़ी में मिर्च अधिक होने के बावजूद खूब बाफले खाए। इसके बाद वापस बस में बैठे और घर की और रवाना हो गए। घर आकर इतने थक चुके थे कि बाकी सारी शाम आराम करने में बीती।
चूँकि हमें फोटोग्राफी का भी बहुत शौक है इसलिए मौका देखकर अपना कैमरा भी रख लिया था। तो वहाँ जमके फोटोग्राफी की। कुछ फोटो हम भी खींचवा लिए। अब सारे तो आपको दिखा नहीं सकते इसलिए कुछ ही आपको दिखा रहा हूँ, देखिये और आनंद लीजिये। :)
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ये है भोजपुर का मंदिर |
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फ्रंट व्यु: भीड़ तो देखिए |
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हम सोचे हम भी मंदिर के सामने फोटू खींचवा लें |
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ये है विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग |
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पीछे बेतवा नदी नजर आ रही है |