रविवार, 16 जनवरी 2011

अखबार की खबरें और जोर का झटका...

रोज सुबह अखबार पढ़ना मुझे भी पसंद है। ज्यादा नहीं तो कम से कम एक अखबार तो होना ही चाहिए। पर अक्सर अखबार पढ़कर बहुत चिंतित हो जाता हूँ। ये चिंता दोहरे स्तर पर होती है। एक तो बड़े बड़े घोटालों, घपलों, मंहगाई, अन्याय और राजनैतिक दांव-पेंच की खबरें परेशां करती ही हैं, देश और समाज की चिंता हो आती है। पर दुसरे स्तर कि चिंता अधिक भयावह होती है। जिससे कि मैं खुद को अधिक जुड़ा महसूस करता हूँ। हर दिन शहर में दो चार रोड एक्सीडेंट होते ही हैं। रोज किसी न किसी के मारे जाने कि खबर छपती है। पढ़कर डर लगता है कि कभी मेरे साथ या मेरे अपनो के साथ भी तो ऐसा हो सकता है। फिर चैन स्नेचिंग, लूट, चोरी, ठगी आदि की खबरें भी छपती हैं और मैं फिर डरता हूँ कि कितने असुरक्षित हैं हम। कोई बड़ा हादसा शहर में घटित होता है तो उसका ब्योरा अखबार में पढ़कर एक किस्म का डर सा लगता है कि ऐसा तो हमारे साथ भी हो सकता है

एक बार तो मैंने यह तय किया था कि अखबार में ये अपराध और दुर्घटनाओं याली खबरें पढूंगा ही नहीं। पढ़ना ही हुआ तो सिर्फ हैडिंग ही पढूंगा। कुछ दिन तो यह सिलसिला चला पर फिर मैंने सोचा कि आँखें बंद करने से हकीकत तो नहीं बदल जाएगी। और कब तक ऐसे डर- डर कर जिया जा सकता है। और सच तो ये भी है कि भले ही डर लगे लेकिन ऐसी सनसनी वाली खबरें पढ़ने से खुद को रोक भी नहीं पाता। फिर हर बार ये खबरें पढ़कर कुछ न कुछ सबक तो मिलता ही है कि क्या सावधानी बरतनी चाहिए। कुछ भी हो अखबार पढ़ना तो हम नहीं छोड़ेंगे।

पर कभी कभी ऐसी खबरें भी पढ़ने को मिल जाती हैं जो गुदगुदा जाती हैं। ऐसी ही एक खबर पर दो दिन पहले नज़र पड़ी। भोपाल के किसी पति की दास्ताँ थी ये बेचारा किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी मे काम करता है और जिस दिन भी वो सात बजे तक घर नहीं आ पता था उसे रात बाहर गुजारनी पड़ती थी। पत्नी घर में घुसाने ही नहीं देती थी न। पर क्यों आखिर? दर असल इन्होने प्रेम-विवाह किया था और शादी से पहले लडकी ने लड़के से स्टाम्प पेपर में अपनी कुछ शर्तों मे साइन करवा रखा था। उन्ही में से एक शर्त थी कि यदि लड़का सात बजे तक घर नहीं आया तो लड़की उसे घर में घुसने नहीं देगी। कुछ और शर्तें भी देख लें

एक समय खाना मैं बनाउंगी, एक समय तुम।

रात नौ के बाद घर में टी.वी. नहीं चलाओगे।

शराब पूछ कर पीओगे।

मां से नहीं मिलने जाओगे

पहले तुम्हारे रुपयों से घर खर्च चलाया जाएगा फिर मेरे रुपयों से

मकान मेरे नाम पे खरीदोगे

इत्यादि...

लड़के ने सोचा होगा कि मज़ाक कर रही है फिर प्यार का भूत भी रहा होगा सो उसने सब स्वीकार कर लिया। कुछ महीने तो ठीक चला पर उसके बाद बीवी ने बाकायदा सारी शर्तों का पालन करना शुरू कर दिया। कई बार घर आने पर वो सूंघ कर देखती कि कहीं शराब पीकर तो नहीं आया। एक बार तो शक होने पर ब्लड टेस्ट भी करवा लिया था। जब लड़के ने कई रातें स्टेशन में गुजारीं तब उसके बर्दाश्त के बाहर हुआ। उसने सीधे सीएसपी को फोन लगाया और धमकी दी कि यदि उन्होंने मामला नहीं सुलझाया तो वो आत्महत्या कर लेगा। पुलिस ने दोनों को बुलवाकर परामर्श किया और कुछ समझौता करवाया।

बेचारा लड़का वो तो बस यही गाता रहता होगा- "जोर का झटका हाय जोरों से लगा, शादी बन गयी उम्रकैद की सज़ा...

इस खबर को पढ़कर थोड़ा अच्छा भी लगा कि अब लडकियां भी अपने शर्तों पर शादी कर रही हैं, पतियों की मनमानी अब नहीं चलेगी। पर उस पति पर तरस भी आया। अब सारे पुरुषों का बदला उस बेचारे से लिया जाए ये भी तो उचित नहीं है न?

शुक्र ये है कि इसे पढ़कर मुझे डर नहीं लगा कि ऐसा मेरे साथ भी हो सकता है क्योंकि संयोग से मैं पहले से ही शादीशुदा हूँ और सौभाग्य से मैंने ऐसी किन्ही शर्तों पर शादी नहीं की है। फिर हमारी आपसी अंडरस्टेंडिंग इतनी बुरी नहीं है कि ऐसी नौबत आए।
(कम से कम मैं तो यही समझता हूँ)

हाँ ये खबर शादी के पहले पढ़ ली होती तो शायद डरके मारे शादी ही नहीं करता।
(अब ये भी दिल को बहलाने वाली बात है, वरना क्या शादी के पहले ऐसी बातें नहीं सुनी थी?)

अब एक बात और मेरे दिमाग में घूम रही है पति पत्नी के सारे चुटकुलों में पति को ही बेचारा क्यों बताया जाता है? कहीं वो पत्नी के ज्यादा बोलने से पीड़ित है, कहीं उसके टोकने से, कहीं उसके मोटापे से, कहीं झगडालूपन से तो कहीं उसके देहातीपन से। और तो और इन सारे चुटकुलों में पत्नी नामक प्राणी को निहायत ही बेवक़ूफ़ और बातूनी बताया जाता है। क्योंकर?

मुझे तो सबसे सही वजह यही लगती है कि आम तौर पर हास्य के लिए वो परिस्थितियाँ बनाईं जाती हैं जो वास्तविक नहीं हैं याने सच्चाई के उलट और अतिशयोक्ति से भरी हुई। अब यदि पति के बजाए पत्नी को पीड़ित बनाया जाए तो शायद ये हास्य (comic) नहीं बल्कि त्रासद (tragic) हो जाएगा।

आपके  क्या विचार हैं?

33 टिप्‍पणियां:

  1. सुरेश शर्मा जी की चार लाइना में पत्नी को भी टार्गेट किया जाते देखा हूँ :)

    सात बजे के बाद वाली शर्त अगर मुझपर लागू हो जाय तो मैं तो फिर कभी घर में घुस ही नहीं पाउंगा :)

    मस्त पोस्ट है।

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  2. देखो भाई,अखबार तो ज़रूर पढ़ो,पर अच्छावाला पढो.अपनी रूचि के अनुसार समाचार पढ़ो....!

    भैया,यदि बिना मेल के शादी होगी,तो ऐसे ही होगा.यह रिश्ता नहीं सौदा है!

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  3. अखबार पढ़ना अब न के बराबर हो गया है हमारा। ब्लॉगवर्ल्ड की ही तरह न्यूज़ मीडिया में भी गंभीर और सतही लेखन गड्डमगड्ड हुआ दिखता है। बहुत बार तो पता ही नहीं चल पाता कि इस खबर पर हँसा जाये, या दुखी हुआ जाये:)
    हास्य के बारे में सही विचार व्यक्त किये हैं, वास्तविक रूप से उलट परिस्थितियों की कल्पना ही इसे ट्रैजिक से कॉमिक बनाती हैं।
    कभी मौका लगे तो एक पुरानी फ़िल्म है, ’एग्रीमेंट’,
    देखियेगा। रेखा और शैलेन्द्र हैं, विषयवस्तु लगभग यही।
    सन्दर्भित घटना में लड़के ने ऐसा नहीं सोचा होगा कि लड़की मजाक कर रही है, प्यार का भूत दोनों के ही सर पर सवार रहा होगा।
    और ये गाना तो शायद हर शादीशुदा मर्द गाता होगा।
    मजा आया सोमेश।

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  4. बढ़िया पोस्ट है सोमेश! मज़ा आया पढ़कर.
    अखबार पढना तो मैंने साल भर पहले ही बंद कर दिया. अब जब कभी पडोसी बाहर जाते हैं तो उनके दरवाज़े पर पड़ा अखबार पढ़ लेता हूँ या दफ्तर में कभी पढ़ने को मिल जाता है.:)
    ये ट्रेजेडी और कॉमेडी वाली बात अपनी जगह पर ठीक है. जिस तरह यह तय हो चला है की चुटकुले या मंचीय हास्य कविता में पुलिस या नेता को नीचा दिखाया जाएगा उसी तरह चुटकुलों में पति को दयनीय दिखाया जाता रहा है. यह ठीक भी है, वास्तविकता में समाज में स्त्रियों (पत्नियों) की दशा ज्यादा ख़राब है, ऐसे में आदमियों की दशा कहीं तो खराब होनी चाहिए!
    प्रेम करनेवाले बहुत सनकी हो जाते हैं. मेरी पहचान में एक जैन युवक ने अपनी प्रेमिका के कहने में आकर मुर्गा-मटन खाना शुरू कर दिया. वह अपने प्यार का हवाला देकर अपनी (ठाकुर) प्रेमिका को भी मुर्गा-मटन खाने से मना कर सकता था लेकिन इस मामले में भी लडकी की ही चलती रही होगी.
    कैसे-कैसे लोग होते हैं? किन-किन शर्तों पे लोग अपना प्यार मनवाना चाहते हैं! क्या किया जाय!

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  5. समाचार मत पढ़ें। अखबार में साहित्‍य और संपादकीय पेज भी होता है, उसे पढ़ना चाहिए। समाचार तो उनके लिए होते हैं, जिनके बारे में होते हैं।

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  6. पहले तो यही लगा कि बंद अंत में अपनी आपबीती कह कर संवेदना बटोर झोली फैला लेगा ...मगर आप तो खिसक लिए ....
    चुटकुले कारुणिक मार्मिक स्थितियों से बाल बाल बच जाने के हास्य को उपजाते हैं -पुरुष के साथ इसका निर्वाह हो जाता है -चुटकुला बन जाता है ..औरत बेचारी पहले से ही बाल (दोनों अर्थों में ) बच्चों वाली होकर बाल बाल निकल नहीं पाती और निश्चय ही वह एक ट्रेजिक इंड होता -इसलिए ही उन्हें चुटकुलों से बख्श दिया गया ....

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  7. सात शर्तें तो हमने भी लीं। सात बजे के बाद आने वाली, होनी चाहिये।

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  8. अखबार अब नेट पर ही पढते हैं जी

    वैसे मैं बताऊं, मैनें अपनी शादी में पण्डित को बोल दिया था कि जो हमारी शर्तें होंगी हम बाद में आपस में मशविरा कर लेंगे आप टाईम खोटी मत करो :)

    पत्नियां खुद पति को एक चुटकुला समझती हैं :) और नारी जाति ने चुटकुले/व्यंग्य कम ही लिखे हैं शायद इसलिये।

    लाफ्टर, कॉमेडी आदि प्रोग्राम्स भी आपने देखे होंगे, कितनी महिलायें हंसा पाई हैं?

    प्रणाम

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  9. @ सतीश पंचम
    ज्यादातर हास्य कवि पत्नी को ही टार्गेट करते हैं और आप क्या बहुत से लोग नहीं घुस पाएंगे। :)
    आभार।

    @ संतोष त्रिवेदी
    अपनी रुचि के समाचार तो पढ़ते ही हैं पर बाकियों पर भी नज़र चली ही जाती है। आप सही कह रहे हैं यह सौदा ही है।

    @ अरूण साथी
    धन्यवाद अरुण जी :)

    @ मो सम कौन (संजय जी)
    न्यूज़ मीडिया के बारे में बिल्कुल सही कहा आपने।
    ’एग्रीमेंट’ जरूर देखेंगे, आपने सज़ेस्ट किया है तो देखना ही पड़ेगा। :)

    @ विशाल मुलानी
    शुक्रिया बंधु :)

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  10. @ निशांत
    सही कहा आपने अक्सर प्रेम करनेवाले बहुत सनकी हो जाते हैं। पर वो प्यार ही क्या जो शर्तों पर किया जाए? :)
    बहुत आभार और धन्यवाद

    @ अविनाश वाचस्पति
    साहित्‍य और संपादकीय पेज तो पढ़ते ही हैं सर पर ये होता ही कितना है? और यदि समाचार न पढें तो समाचार पत्र पढ़ने का औचित्य ही क्या है। :)

    @ अरविंद मिश्रा
    मिश्रा जी निश्चिंत रहें संवेदना बटोरकर झोली फैलाने वालों में मैं नहीं हूँ, ऐसा तो हरगिज़ नहीं करूँगा। चुटकुलों पर आपके विचार महत्वपूर्ण हैं। आभार।

    @ प्रवीण पाण्डेय
    सात शर्तें तो सभी मानते हैं पर सात बजे के बाद क्यों घर जाना चाहते हैं आप? जल्दी जाने में डर लगता है क्या? :) :)

    @ अन्तर सोहिल (अमित गुप्ता जी)
    सही कह रहे हैं आप नारी जाति ने चुटकुले/व्यंग्य कम ही लिखे हैं। पर इसका कारण क्या हो सकता है ये भी तो सोचें। :)

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  11. सोमेश जी ..... शादी शर्तों पर .........अच्छी लगी ये प्रस्तुति.सहमत आपके विचारों से.

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  12. आदरणीय सोमेश जी
    नमस्कार !
    बढ़िया पोस्ट है मज़ा आया पढ़कर.

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  13. शुक्र ये है कि इसे पढ़कर मुझे डर नहीं लगा कि ऐसा मेरे साथ भी हो सकता है क्योंकि संयोग से मैं पहले से ही शादीशुदा हूँ और सौभाग्य से मैंने ऐसी किन्ही शर्तों पर शादी नहीं की है। फिर हमारी आपसी अंडरस्टेंडिंग इतनी बुरी नहीं है कि ऐसी नौबत आए।

    दुआ है ऐसी नौबत कभी न आये ...और आपमें ये आपसी अंडरस्टेंडिंग बनी रहे ....

    मुझे तो सबसे सही वजह यही लगती है कि आम तौर पर हास्य के लिए वो परिस्थितियाँ बनाईं जाती हैं जो वास्तविक नहीं हैं याने सच्चाई के उलट और अतिशयोक्ति से भरी हुई। अब यदि पति के बजाए पत्नी को पीड़ित बनाया जाए तो शायद ये हास्य (comic) नहीं बल्कि त्रासद (tragic) हो जाएगा।

    सही कहा ....या फिर बहुत कम प्रतिशत में ऐसा होता होगा ....
    पर मेरी नज़र में तो अधिकतर त्रासदियाँ ही गुजरीं ....

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  14. सुन्दर मनोरंजक आलेख. कभी कभी ऐसा भी होता है:
    Husband: aaj khane mein kya banaogi?

    Wife: Jo aap kaho

    H: Dal chawal bana lo
    W: Abhi kal hi to khaye the

    H: to sabji roti bana lo
    W: bacche nahi khayenge

    H: to chhole puri bana lo
    W: mujhe heavy heavy lagta hai

    H: eggs bhurji bana lo
    W: aaj guruvaar hai

    H: paraanthe?
    W: raat ko paraanthe kaun khata hai??

    H: Hotel se mangwa lete hain?
    W: roz roz hotel ka nahi khana chahiye

    H: kadhi chawal?
    W: dahi nahi hai

    H: idly sambar?
    W: usme time lagega.pehle bolna chahiye tha na!!

    H: maggi hi bana lo, usme time nahi lagega
    W: woh koi meal thodi hai? Pet nahi bharta

    H: phir ab kya banaogi?
    W: wo jo aap kaho

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  15. अख़बार से शायद आपका अभिप्राय उस पिलपिले काग़ज़ पर छपी काले अक्षर वाली वस्तु से है जो मुझे भैंस बराबर दिखाई देती है, और सुबह सुबह ही अमारे ऑफिस वालों की कृपा से घर पर आ धमकती है, तो भाई साहब इस वस्तु से हमारा कोई सम्बंध नहीं. वैसे पत्नियाँ महीने दो महीने में इसके ज़रिये अपनी ऊपरी कमाई बना लेती हैं.
    रही बात चुटकुलों की तो अपने चार लाईनाँ वाले तो पत्नी जी से ही अपनी बात शुरू करते हैं और डिस्क्लेमर ये कि जिनसे वो डरते हैं उनके नाम के आगे “जी” लगाते हैं. है न, सोमेश जी!!

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  16. अखबार मैं तो क्या पढ़ें यही समझ मैं नहीं आता. सम्पादकीय चलेगा. अधिक बोला तो अपना अखबार बिकना बंद .

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  17. बेहद सुन्दर आलेख... मै तो अखबार पढ़ने से डरती हूँ... सुबह सवेरे ..कैसी खबर हो जो दिल दुख जाए... और आज आपका आलेख देख तो अच्छा लगा और वो बात भी सच्ची है जो कोमिक और ट्रेजडी का वातावरण बनाती है ..और उस बेचारे पे भी दया आ रही है जी विचित्र शर्तों पर शादी कर बैठा ...

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  18. सारी टिप्पणी पढ़ने के बाद पता चला रहा है की कितने लोग अखबार पढ़ने से भागते है | ये खबर ब्लॉग जगत में ही कही पढ़ी थी ये सबक उन लोगों के लिए है जो प्यार को मजाक समझते है और मजाक में ही शादी कर लेते है | कुछ सर्ते तो मुझे सही लगी बल्कि लड़की ने गलिमत की कि कहा की मुझसे पूछ कर पियोगे मतलब पीने की छुट तो दी नहीं तो कुछ लोग पीने क्या देखने की भी छुट नहीं देते है | एक बात और बताऊ अख़बार में इस तरह कि खबरे पूरी सच नहीं होती है उसमे अपनी तरफ से काफी चाट मसाला डाला जाता है |

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  19. .

    मुकेश जी के गाने की एक पंक्ति याद आ रही है --

    " मगर प्यार शर्तों पे तुमने किया ..."

    .

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  20. जी हाँ इस ख़बर ने तो मुझे डरा ही दिया था..क्योंकि मैं तो अभी कुंवारा हूँ और आने वाले ३ साल तक रहने का इरादा है..अब इस दौरान कितनी शर्तों का इजाफा हो जायेगा कह नहीं सकता.. :)
    बहरहाल ये शानदार प्रस्तुति है..और ये जिस पर बीती है उससे पूरी सुहानुभूति है..लेकिन हमारे लिए रोज़ की हिंसक अथवा "दिलदेहलाऊ" खबरों से इतर ये खबर मनोरंजक भी थी और सावधान करने वाली भी :) :)
    वैसे मुझे एक गणित मिला इसमें- अँधा कानून होता है और प्यार अँधा होता है..इस समीकरण से हमें मिला...प्यार कानूनी होता है .. :P :D
    बढ़िया प्रस्तुति के लिए बधाई :)

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  21. @ उपेन्द्र ' उपेन'
    धन्यवाद उपेन जी।

    @ संजय भास्कर
    आदरणीय संजय जी
    नमस्कार !
    बहुत बहुत आभार।

    @ हरकीरत ' हीर' जी
    "दुआ है ऐसी नौबत कभी न आये ...और आपमें ये आपसी अंडरस्टेंडिंग बनी रहे .... "

    आमीन...! शुक्रिया :)

    @ सुब्रमणियन जी
    धन्यवाद सर, आपका चुटकुला झकास है। :)

    @ चला बिहारी...(सलिल जी)
    बिहारी जी आपका डिस्क्लेमर सही है जी पर हमारे नाम के आगे जी लगाकर हम पर ज़ुल्म न करें जी।

    ध्यान रखिएगा सलिल जी।

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  22. @ एस.एम.मासूम
    आपका अखबार तो हमने कभी पढ़ा नहीं पर ’अमन का पैगाम’ चलता रहे यही दुआ है।

    @ डॉ. नूतन जी
    आपका डर ज़ायज है। डरता मैं भी हूँ पर अखबार पढ़ना नहीं छोड़ूंगा। ब्लॉग पर पधारने और विचार व्यक्त करने के लिए हार्दिक आभार।

    @ अंशुमाला जी
    सच में बहुत लोग अखबार नहीं पढ़ते, जाने क्यों? इस खबर से सबक तो कई लोगो ने लिया ही होगा। वैसे आप सच कह रही हैं खबरों में चाट मसाला काफी डाला जाता है।
    यहाँ पधारने और विचार व्यक्त करने के लिए हार्दिक आभार।

    @ ZEAL (डॉ. दिव्या जी)
    चलिए हमारा लिखा पढ़के आपको कुछ तो याद आया। लिखना सार्थक हो गया। :)

    @ विनायक दुबे
    इतना भी मत डरो यार, शर्तें तो तुम्हारी पूरी की जाएंगी। ऐसा योग्य लड़का कहाँ मिलता है आजकल :)

    तुम्हारा गणित जबरदस्त है। इंजीनियर बुद्धि लगा ही ली। :)

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  23. सोमेश भाई, मुझे तो संतोष त्रिवेदी जी सलाह सबसे सही लग रही है। इसपर ध्‍यान दिया जाए।


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    ज्‍योतिष,अंकविद्या,हस्‍तरेख,टोना-टोटका।
    सांपों को दूध पिलाना पुण्‍य का काम है ?

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  24. hmmmmmmmmm......soch rahaa hun ki kyaa kahun.....in saahab ji ke haalaat par hansu yaa inhen saantvanaa doon.....

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  25. भोपाल की ख़बर भी खूब रही....
    ऐसा प्रनोट पढ़ कर भी अगर इस जोकर के सिर प्यार का भूत न उतरा था तो फिर उसको सहना ही चाहिये.

    बाक़ी अख़बारों का क्या है ...चोरी—डकैती—लूट बगैहरा की ख़बरों में मेहनत भी नहीं लगती न....गर कहीं विकास/अविष्कार बगैहरा के बारे में लिखना पड़ जाए तो पसीना भी निकल जाता है न...

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  26. @ ManPreet Kaur
    शुक्रिया जी।

    @ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
    संतोष त्रिवेदी जी सलाह पर ध्‍यान दे चुके हैं। धन्यवाद।

    @ राजीव थेपड़ा
    आप जो भी करें पर हमारा धन्यवाद जरूर ले लें।

    @ काजल कुमार
    आपकी दोनो बात से सहमत हैं सर, आभार।

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  27. उस बेचारे पति के लिए तो भारतीय क़ानून में त्वरित तलाक का प्रावधान है|

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  28. मनोहर श्‍याम जोशी ने कुछ इस तरह कहा है- कितना हास्‍यास्‍पद है यह त्रास और कितना त्रासद है यह हास्‍य.

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