गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

सवाल कुछ न पूछिए

हो गए हैं किस क़दर बेहाल कुछ न पूछिए।
हर तरफ फैला हुआ है जाल कुछ न पूछिए।

उस गाँव तक पक्की सड़क मंजूर तो हो गई,
कितने मगर उसमें लगेंगे साल कुछ न पूछिए।

दो बाल्टी पानी के लिए जंग छिड़ गई,
टैंकर से लगी भीड़ और बवाल कुछ न पूछिए।

बाबू मजे से बैठकर सब खेलते हैं ताश,
दफ्तर में हो गई है हड़ताल कुछ न पूछिए।

चार गुना दाम में बिकने लगे अनाज,
छाया हुआ क्षेत्र में अकाल कुछ न पूछिए।

पक्ष औ' विपक्ष में हुई जम के मारपीट,
दिल्ली है या लखनऊ कि भोपाल कुछ न पूछिए।

इंसान के ही जान की कीमत नहीं रही,
बिकता है यहाँ यूँ तो हर माल कुछ न पूछिए।

जमाने का भी आजकल दस्तूर है 'सोमेश',
जैसा है चलने दीजिए सवाल कुछ न पूछिए।

- सोमेश सक्सेना

37 टिप्‍पणियां:

  1. चलिये जी, नहीं पूछते कुछ सवाल। तारीफ़ तो कर सकते हैं न? :)

    शुरू की दो पंक्तियाँ और फ़िर
    "इंसान के ही जान की कीमत नहीं रही,बिकता है यहाँ यूँ तो हर माल कुछ न पूछिए।"
    विशेष रूप से पसंद आईं।

    वैरायटी है सोमेश आपके पास और शब्द-संयोजन भी, शुभकामनायें।

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  2. @जैसा है चलने दीजिए सवाल कुछ न पूछिए।

    हर जगह का यही हाल है ब्लॉग से लेकर प्रधान मंत्री तक सवाल न पूछिये |

    यथार्थवादी रचना सत्य को बया करती |

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  3. behad sundar gazal kahi hai aapne somesh ji
    Har sher lajawab hai
    Shubhkamnaye sawikar kijiye

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  4. सामयिक रचना के लिए मुबारकें.
    बस सवाल मत पूछिए,देखते रहिये.
    सलाम.

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  5. पूछते नहीं.. लेकिन बताते चलें कि यह जो भी था अच्छा प्रयास था.. क्योंकि इसमें बयान किये गये हालात वाक़ई पूछने लायक रहे नहीं.. सोमेश जी! थोड़ी मिहनत से इसे गज़ल बनाया जा सकता था!! मगर चलेगा!!

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  6. जमाने का भी आजकल दस्तूर है 'सोमेश',
    जैसा है चलने दीजिए सवाल कुछ न पूछिए।

    -क्या बात है, बहुत खूब!

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  7. उस गाँव तक पक्की सड़क मंजूर तो हो गई,
    कितने मगर उसमें लगेंगे साल कुछ न पूछिए।
    बहुत सुंदर रचना, सभी शेर एक से बढकर एक, धन्यवाद

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  8. एक पैर बजाकर जोरदार सैल्यूट है जी आपको
    मजा आ गया
    यथार्थ की बेहतरीन अभिव्यक्ति

    प्रणाम स्वीकार करें

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  9. @ संजय जी
    आभार दादा, बस सीख रहा हूँ आप लोगो से.

    @ सुनील कुमार जी
    धन्यवाद आपका.

    @ अंशुमाला जी
    जी, मैंने भी यही महसूस किया के सवाल पूछना तो लोग भूल ही गए हैं जैसे. जो जैसा है बस स्वीकार कर लेते हैं.
    आभार

    @ दीपक सैनी जी
    धन्यवाद आपका.

    @ सगेबोब जी
    शुक्रिया, खुशामदीद :)

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  10. @ सलिल जी
    आपने कह दिया चलेगा तो चलेगा :)
    सच कहूँ तो ग़ज़ल लिखने का न तो मुझमे सलीका है और न मुझसे इतनी मिहनत होती है, फिर भी कोशिश करता हूँ के ग़ज़ल जैसा कुछ कह पाऊं.
    आप मार्गदर्शन करते रहें तो थोड़ा बहुत सीख ही जाऊंगा.

    @ समीर लाल जी
    धन्यवाद सर .

    @ राज भाटिया जी
    बहुत धन्यवाद.

    @ अजित वडनेरकर जी
    बहुत खुशी हुई आपको अपने ब्लॉग पर देखकर :) बहुत धन्यवाद एवं आभार.

    @ शिवकुमार जी
    धन्यवाद आपका.

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  11. अच्छा लगा ये रूप भी, वैसे ये सवाल पूछने का औचित्य वाकई नहीं रह गया है।

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  12. हर शेर कर गया कितनी ही बातें बयाँ
    'सोमेश' क्या कर गए कमाल कुछ न पूछिए
    धन्यवाद आपका...

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  13. वाह दुष्यंत कुमार की याद आ गयी !

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  14. यथार्थवादी रचना सत्य को बया करती |

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  15. जमाने का भी आजकल दस्तूर है 'सोमेश',
    जैसा है चलने दीजिए सवाल कुछ न पूछिए।
    सच है सोमेश जी आज हर तरफ ही बुरा हाल है सवाल भी कोई कितने करे। बहुत अच्छे शेर हैं। बधाई आपको।

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  16. aapke blog par aana jaana laga rahta hai... ladki ki prem kathayen bahut achchhi lagin. aur ha haalaton ka yeh vivechan bhi..

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  17. @ प्रवीण पाण्डेय जी
    सवालात सच में संगीन हैं इसलिए तो पूछने से मना किया है।

    @ Manpreet Kaur
    Thanx dear

    @ अन्तर सोहिल जी आदरणीय अमित जी आप तो मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं। पहले सेल्यूट फिर प्रणाम ! सीधे कत्ल ही कर दिया होता।

    प्रणाम तो जी मेरा स्वीकार करें।

    @ अविनाश चंद्र जी
    धन्यवाद आपका।

    @ अदा जी
    कमाल तो जी आप करती हैं आपने ब्लॉग में, अपनी लेखनी से और अपनी आवाज से। आभार आपका।

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  18. @ अरविंद मिश्रा जी
    बहुत बड़ा नाम ले लिया सर आपने। उनको तो मैं गुरु मानता हूँ। उनके जैसा लिख पाऊं ये बहुत बड़ी बात होगी मेरे लिए। आभार आपका।

    @ Patali-The-Village
    बहुत धन्यवाद।

    @ निर्मला कपिला जी
    बहुत आभार आपके आशीर्वचनोँ के लिए।

    @ भारतीय नागरिक
    धन्यवाद आपका। आते रहें। :)

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  19. टेंकर पर पानी की भीड और उस पर मचता हुआ वबाल सडक बनाने की स्वीकृति तो हो जाना मगर उसमें कितना समय लगेगा सही हकीकत वयान की है । दुष्यंत जी ने भी कहा था खास सडके बन्द है कबसे मरमम्मत के लिये यह हमार देश की सबसे बडी पहिचान है।जब लोग सर्वेाच्च न्यायालय की नहीं सुन रहे हैं तो कवि को कहना ही पडेगा कि क्या करें जैसा ढर्रा चल रहा है चलने दीजिये । सारी सच्चाई उजागर कर दी कविता में

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  20. सुन्दर ग़ज़ल! सही कहा, आजकल कोई सवाल पूछना ही फजीहत की जड़ है|

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  21. 'इंसान के ही जान की कीमत नहीं रही,बिकता है यहाँ यूँ तो हर माल कुछ न पूछिए'

    आपके सवाल अपने आप में ज़वाब देते हैं.मुश्किल ये है की जिन्हें ज़वाब देना है वो चादर ताने सो रहे हैं.इंतजारशुदा हैं आरटीआई के जिसमें भी 'गोलमगोल-एक्सपर्ट' हो गए हैं !

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  22. उस गाँव तक पक्की सड़क मंजूर तो हो गई,
    कितने मगर उसमें लगेंगे साल कुछ न पूछिए।

    जमाने का भी आजकल दस्तूर है 'सोमेश',
    जैसा है चलने दीजिए सवाल कुछ न पूछिए।


    vaise aayi to main aapka dhanyaawaad krne ke liye..ki aapne meri rchnaa " मुस्कान की किल्लत " ko itne dhyaan se praa..aur usme sudhaar btaayaa.................pr aapke blog ki ye Ghzal pr ke bhul gyi....apni rchnaa ke baare me....
    aur sher pr ke ...waah waahj nikal gyi..speciaaly ...2 selcted shers to kmaaal ke hain...bahut aannd aayaa aapki gazl pr ke..

    hmm.aur un lines ke baat..jo aapko naawashayak lgi..actully wo maine sirf un lines ko aadar dene ke liye likha..kyunki..sirf un lines ke aadhaar pr hi is rchnaa ka srijan ho paayaa.....pehale wo lines aaayi...rchnaa tio unpe aadhaar pr bni he.....

    hmm
    shurkiyaa...aaur

    bahut bdhyiaa lekhni he aapki
    take care

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  23. सोमेश जी हम कुछ नहीं पूछेंगे पर कहेंगे जरुर ......

    बस गज़ब है जनाब ....!!

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  24. @ बृजमोहन श्रीवास्तव जी
    इस सार्थक और सारगर्भित टिप्पणी के लिए आभार।

    @ Smart Indian (अनुराग जी)
    शुक्रिया सर।

    @ संतोष त्रिवेदी जी
    सही है आपका कहना। जिन्हें जवाब देना है वो न केवल चादर ताने सो रहे
    हैं बल्कि सवालों को नजरअंदाज भी कर रहे हैं। टिप्पणी के लिए आभार।

    @ ज़ोया जी
    इस हौसला अफ़जाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

    @ हरकीरत जी
    आभार आपका।
    आपके आशीर्वाद की जरूरत रहेगी हमेशा।

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  25. प्रिय बंधुवर सोमेश सक्सेना जी
    सस्नेहाभिवादन !

    हो गए हैं किस क़दर बेहाल कुछ न पूछिए
    हर तरफ फैला हुआ है जाल कुछ न पूछिए


    अच्छा लिख रहे हैं आप , बधाई स्वीकारें । 

    प्यारो न्यारो ये बसंत है !
    बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  26. बिना सवाल पूछे जब इतनी प्‍यारी रचना पढने को मिल जाए, तो फिर सवाल पूछने की जरूरत ही क्‍या है।

    ---------
    ब्‍लॉगवाणी: ब्‍लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।

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  27. इस ग़ज़ल के तो कहने क्या..आते ही ब्लॉग फॉलो कर लिया..हर शेर इतना खूबसूरत कि वाह करने को जी चाहे...
    यूं ही लिखते रहिए और आप भी तशरीफ लाएं...

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  28. इंसान के ही जान की कीमत नहीं रही,
    बिकता है यहाँ यूँ तो हर माल कुछ न पूछिए।

    जमाने का भी आजकल दस्तूर है 'सोमेश',
    जैसा है चलने दीजिए सवाल कुछ न पूछिए।
    Pahlee baar aapke blog pe aayee aur aapkee lekhanee se bahut prabhavit huee!

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  29. राजेन्द्र स्वर्णकार जी एवं ज़ाकिर अली ‘रजनीश जी
    बहुत बहुत धन्यवाद.

    वीना जी एवं क्षमा जी
    स्वागत है आपका। बहुत धन्यवाद।

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  30. ग़ज़ल लिखने की आपकी प्रतिभा से हम तो परिचित ही नहीं थे

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  31. जमाने का भी आजकल दस्तूर है 'सोमेश',
    जैसा है चलने दीजिए सवाल कुछ न पूछिए।

    लेकि‍न जैसा है वैसा ही चलने दि‍या गया तो हम वहां नहीं पहुंचेगे जहां पहुंचना चाहते हैं।

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  32. @ नीरज बसलियाल
    प्रतिभा तो क्या है बस हाथ आजमा लेता हूँ. वैसे इसके पहले भी ग़ज़ल और कविता पोस्ट कर चूका हूँ.

    @ Rajey Sha
    बिलकुल सही कह रहे हैं आप. मैंने भी यह नहीं कहा की सवाल नहीं पूछना चाहिए और जैसा है चलने दिया जाए.
    सवाल तो जरूर पूछना चाहिए जी पर आप ही बताइए कितने लोग पूछते हैं भला?

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  33. चलेगा जी चलेगा और दौड़ेगा भी.

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