कोई सात साल पहले मैं हिंदी ब्लॉग जगत से परिचित हुआ था। पढ़कर खुद भी ब्लॉगिंग करने की इच्छा हुई तो मैंने भी ब्लॉग बना लिया। तब कबीर का एक पद याद आया- 'साधो सबद साधना कीजे' बस मैंने ब्लॉग का नाम रख लिया -"शब्द साधना"। नाम तो रख लिया पर साधना जैसा कुछ भी नहीं था। यह जल्दी ही साबित भी हो गया जब मैंने साल भर के अंदर ही ब्लॉगिंग बंद कर दी। कुछ साल बाद मैंने पुनः ब्लॉगिंग शुरू की। इस बार कुछ ज्यादा समय तक सक्रिय रहा पर उसके बाद फिर बंद। हालत यह है कि पिछले लगभग तीन साल से कोई पोस्ट नहीं लिखी। इस बीच कई बार सोचा कि कुछ लिखूं पर हर बार टलता रहा। लम्बे समय तक पोस्ट लंबित रहने के बाद मैंने इस ब्लॉग को ही हाईड कर दिया। आखिर अब जाकर मैंने तय किया कि फिर से ब्लॉगिंग शुरू की जाये। तो लीजिये कर दी एक नयी शुरुआत।
चूँकि मैं न तो शब्दों का धनी हूँ और न ही कहीं से साधक हूँ इसलिए सबसे पहले तो मैंने इसका नाम शब्द साधना बदलने का निर्णय लिया। नाम रखते समय जो गलती हुई थी उसे सुधारना भी तो जरुरी है -देर से ही सही। (वैसे भी किसी ब्लॉगर ने मुझसे कहा था कि इस नाम से लगता है किसी बड़े साहित्यिक का ब्लॉग है, एक अन्य ब्लॉगर ने कहा कि बड़ा भारी भरकम नाम है लगता है जैसे कम से कम पचास साल के आदमी का हो।) अब लेखन में रूचि होने के बावजूद ब्लॉग लेखन तो मैं ठीक से कर नहीं पाया, न तो नियमित रूप से ब्लॉग लिखता हूँ और न ही दुसरे ब्लॉग्स पर टिप्पणी करता हूँ इसलिए मैं खुद को ब्लॉगर के बजाय "लगभग ब्लॉगर" मानता हूँ। बस इसलिए ब्लॉग का नाम भी रख दिया "लगभग ब्लॉग", वैसे भी जिस ब्लॉग पर छह साल में तीस पोस्ट भी न हों उसे ब्लॉग के बजाय लगभग ब्लॉग कहना ही उचित होगा। नाम बदलने के साथ मैंने इसमें थोड़े बहुत बदलाव भी कर दिए। बहुत से अनावश्यक से विजेट्स हटा दिए और कुछ पोस्ट भी डिलिट कर दिए जो मुझे अब फालतू लगे।
बहुत से लोगो ने मुझसे पूछा कि मैंने ब्लॉग लिखना बंद क्यों किया? दरअसल इसके बहुत से कारण हैं। एक तो यह कि तब कुछ व्यस्तताओं के चलते अधिक समय ब्लॉग को नहीं दे पाया। काफी समय तक इंटरनेट और कंप्यूटर कि अनुपलब्धता भी रही। फिर स्वभाव से ही आलसी हूँ तो लिखने मैं भी आलस करता रहा, और मुझमें इतनी प्रतिभा भी नहीं है कि निरंतर सृजन करता रहूँ। एक कारण यह भी है कि हिंदी ब्लॉग जगत से मेरा मन भी कुछ उचट सा गया था। यहाँ का चलन कि टिप्पणियों कि संख्या ही ब्लॉग कि लोकप्रियता और गुणवत्ता का प्रमाण माना जाता है, मुझे निराश सा करता रहा। बहुत से ऐसे ब्लॉग मिले जो बिलकुल भी स्तरीय और पठनीय नहीं हैं पर उनमें कमेंट्स कि लाइन लगी होती है। कमेंट के बदले कमेंट की परिपाटी ने हिंदी ब्लॉग का बहुत नुक्सान किया है। पर जैसा मैंने कहा कि यह एकमात्र कारण नहीं है। बहुत से बेहतरीन ब्लॉग्स भी मुझे पढ़ने को मिले, पर ऐसे ब्लॉग्स का प्रतिशत बहुत कम है। बाद में मैं फेसबुक पर थोडा सक्रिय हो गया और वहाँ विचार व्यक्त करना ब्लॉग से ज्यादा आसान और सुविधाजनक है इसलिए भी ब्लॉग पर लिखना टलता गया।
अब ब्लॉग तो मैंने फिर से शुरू कर दिया है मगर इसे नियमित रूप से कर पाउँगा इसमें मुझे गहरा संदेह है। कारण वही सब है जो मैंने ऊपर लिखे हैं। इसलिए इस बार मैंने खुद के लिए दो नियम बनाये हैं -
चूँकि मैं न तो शब्दों का धनी हूँ और न ही कहीं से साधक हूँ इसलिए सबसे पहले तो मैंने इसका नाम शब्द साधना बदलने का निर्णय लिया। नाम रखते समय जो गलती हुई थी उसे सुधारना भी तो जरुरी है -देर से ही सही। (वैसे भी किसी ब्लॉगर ने मुझसे कहा था कि इस नाम से लगता है किसी बड़े साहित्यिक का ब्लॉग है, एक अन्य ब्लॉगर ने कहा कि बड़ा भारी भरकम नाम है लगता है जैसे कम से कम पचास साल के आदमी का हो।) अब लेखन में रूचि होने के बावजूद ब्लॉग लेखन तो मैं ठीक से कर नहीं पाया, न तो नियमित रूप से ब्लॉग लिखता हूँ और न ही दुसरे ब्लॉग्स पर टिप्पणी करता हूँ इसलिए मैं खुद को ब्लॉगर के बजाय "लगभग ब्लॉगर" मानता हूँ। बस इसलिए ब्लॉग का नाम भी रख दिया "लगभग ब्लॉग", वैसे भी जिस ब्लॉग पर छह साल में तीस पोस्ट भी न हों उसे ब्लॉग के बजाय लगभग ब्लॉग कहना ही उचित होगा। नाम बदलने के साथ मैंने इसमें थोड़े बहुत बदलाव भी कर दिए। बहुत से अनावश्यक से विजेट्स हटा दिए और कुछ पोस्ट भी डिलिट कर दिए जो मुझे अब फालतू लगे।
बहुत से लोगो ने मुझसे पूछा कि मैंने ब्लॉग लिखना बंद क्यों किया? दरअसल इसके बहुत से कारण हैं। एक तो यह कि तब कुछ व्यस्तताओं के चलते अधिक समय ब्लॉग को नहीं दे पाया। काफी समय तक इंटरनेट और कंप्यूटर कि अनुपलब्धता भी रही। फिर स्वभाव से ही आलसी हूँ तो लिखने मैं भी आलस करता रहा, और मुझमें इतनी प्रतिभा भी नहीं है कि निरंतर सृजन करता रहूँ। एक कारण यह भी है कि हिंदी ब्लॉग जगत से मेरा मन भी कुछ उचट सा गया था। यहाँ का चलन कि टिप्पणियों कि संख्या ही ब्लॉग कि लोकप्रियता और गुणवत्ता का प्रमाण माना जाता है, मुझे निराश सा करता रहा। बहुत से ऐसे ब्लॉग मिले जो बिलकुल भी स्तरीय और पठनीय नहीं हैं पर उनमें कमेंट्स कि लाइन लगी होती है। कमेंट के बदले कमेंट की परिपाटी ने हिंदी ब्लॉग का बहुत नुक्सान किया है। पर जैसा मैंने कहा कि यह एकमात्र कारण नहीं है। बहुत से बेहतरीन ब्लॉग्स भी मुझे पढ़ने को मिले, पर ऐसे ब्लॉग्स का प्रतिशत बहुत कम है। बाद में मैं फेसबुक पर थोडा सक्रिय हो गया और वहाँ विचार व्यक्त करना ब्लॉग से ज्यादा आसान और सुविधाजनक है इसलिए भी ब्लॉग पर लिखना टलता गया।
अब ब्लॉग तो मैंने फिर से शुरू कर दिया है मगर इसे नियमित रूप से कर पाउँगा इसमें मुझे गहरा संदेह है। कारण वही सब है जो मैंने ऊपर लिखे हैं। इसलिए इस बार मैंने खुद के लिए दो नियम बनाये हैं -
- कोई भी पोस्ट तभी लिखूंगा जब वास्तव में लिखने के लिए मेरे पास कुछ हो। केवल पोस्ट्स की संख्या या नियमितता बढ़ाने के लिए कभी नहीं लिखूंगा, चाहे दो पोस्ट्स के बीच कितना भी समय अंतराल हो।
- उन्ही ब्लॉग्स पर जाउंगा जो मुझे रुचिकर/ज्ञानवर्धक/मनोरंजक लगते हों और जिससे मेरे दृष्टिकोण और विचारों को मजबूती मिले। कमेंट्स भी तब करूँगा जब मुझे कुछ कहने की इच्छा हो। केवल कमेंट पाने के लिए कमेंट तो कभी नहीं करूँगा।
बहुत दिन हो गए आपकी कोई पोस्ट तो आई ........... :-) ये ठीक है अब ..... पढ़ने को कुछ तो मिलेगा ही ......
जवाब देंहटाएंस्वागत है इस नए रूप में भी आपका .......
शुक्रिया अर्चना जी :)
हटाएंस्वागत है मित्र।ब्लॉग का नाम लगभग ब्लॉग उचित नहीं लगा क्योंकि हम जो कुछ लिखते हैं उसकी विषयवस्तु महत्वपूर्ण है ।ब्लॉग तो बस माध्यम है आपकी अभिव्यक्ति का। आप जब भी लिखें,मन से लिखें बस।
जवाब देंहटाएंहमारे अनियमित होने भर से हमारा कुछ भी लिखा लगभग ब्लॉग की श्रेणी में नहीं आता। यह हमारी आदत है ,ब्लॉग की पहचान नहीं। इसलिए मुझे लगता है कि आप ब्लॉग का नाम अपने लेखन की रूचि के अनुसार रखें।
गम्भीर और सामाजिक विषयों पर लिखते रहें,दिल से।
धन्यवाद संतोष जी. अभी तो ब्लॉग का नाम बदला है अब आप फिर से बदलने को कह रहे हैं? वैसे भी नाम में क्या रखा है? कुछ दिन में यह नाम भी आपको अच्छा लगने लगेगा. :)
हटाएंऔर गम्भीर और सामाजिक विषयों पर ही क्यों लिखें? अगम्भीर और असामाजिक विषयों पर क्यों नहीं? :D
आप इतने पुराने ब्लॉगर हैं ?...क्या बात ..इतनी पुरानी पोस्ट मैंने कभी पढ़ी नहीं...अच्छा है ,आपने ज्यादा नहीं लिखा है :)...आपकी पढ़ी जा सकती है...और ये ब्लॉग हाइड करने वाला आइडिया मुझे नहीं जमा ...अच्छा हुआ आपने ओपन कर दिया ,जब आप कुछ लिख कर पोस्ट कर देते हैं तो फिर वो चीज़ पब्लिक की हो जाती है...उन्हें पढने से क्यूँ महरूम करना .
जवाब देंहटाएंनया नाम भी अच्छा लग रहा है...पुराने नाम से मैं भी थोड़ा डर जाती कि किसी बुजुर्ग ने सर से ऊपर गुजर जाने वाली बातें लिखी होंगी . कमेन्ट पर कमेन्ट वाली परिपाटी तो रही है पर वो ज्यादा दिन चलती नहीं..कमेन्ट पाने के लिए जबरदस्ती कोई कितना लिख पायेगा.
हम जैसे पढने वाले तो यही चाहेंगे कि दो पोस्ट के बीच ज्यादा अन्तराल न हो...अब इतने दिनों बाद बाँध हटाया है तो हहराते पानी को बहने दीजिये...लिखने से पहले इतना भी क्या सोचना. जो बिना सोचे समझे लिखा जाता है..वो ही पढने लायक होता है .,दिल से जो लिखा जाता है..
शुभकामनाएं .
अब तो ओपन कर ही दिया है और अब दुबारा हाइड भी नहीं करूँगा. :) आपका कहना सही है कि लिखने से पहले इतना भी क्या सोचना पर क्या करें ये उधेड़ बुन बनी रहती है कि पता नहीं ठीक लिखा या नहीं. ब्लॉग का नाम पसंद करने के लिए शुक्रिया :)
हटाएंलगभग ब्लॉगर का लगभग ब्लॉग
जवाब देंहटाएंअच्छा है
चलना जरुरी है पहुंचना नहीं
शुभकामनायें और प्रणाम स्वीकार करें
शुक्रिया बंधू :)
हटाएंशुभकामनाएं .... नियमित बने रहना मुश्किल तो सभी लिए है, लिखते रहें
जवाब देंहटाएंशुक्रिया डॉ. मोनिका जी :)
हटाएंब्लॉग लिखना कोई नौकरी थोड़े ही है की बस मन हो न हो बजानी बढ़ेगी , ये तो है ही इसलिए की मनमर्जी से लिखा और पढ़ा जाये , हम खुद भी समय मिलने पर लिखते और पढते है । जब टिप्पणियों कि चिन्ता नहीं है तो फिर लोकप्रियता और अलोकप्रियता की चिंता काहे , जो मन में आये लिखिए और जो मन में आये पढ़िए , इस आजादी का नाम ही ब्लॉग है ।
जवाब देंहटाएं@ कमेंट्स भी तब करूँगा जब मुझे कुछ कहने की इच्छा हो।
इसलिए तो ब्लॉग लिखते समय सब कुछ नहीं लिख देना चाहिए कुछ पढने वालो को टिप्पणी में लिखने के लिए भी छोड़ देना चाहिए ।
@ जिससे मेरे दृष्टिकोण और विचारों को मजबूती मिले।
ऐसी जगहो पर कुछ कहने कि जरुरत ही क्या है जहा पहले से ही समान विचार हो जरुरत तो वहा पड़ती है जहा लोग एक ही दृष्टिकोण से कुछ लिख देते है , या उन्हें दूसरे पहलू या लोगो के विचार मालूम ही नहीं है या जो बस अपनी ही बड़बड़ में व्यस्त है और उन्हें दुसरो की सुनने की आदत नहीं है, सुनाने बताने कि जरुरत तो उन्हें ही है :)
आभार अंशुमाला जी...
हटाएंमैंने यह तो नहीं कहा कि समान विचारों वाले ब्लॉग पर ही जाऊंगा. असहमति से भी तो दृष्टिकोण और विचारों को मजबूती मिलती है. है न? और यूँ भी मैंने विचारों की बात की है विचारधारा की नहीं. :)
कबीर का जिक्र आया तो कबीर से जुड़ी एक कहानी याद आ गई जिसमें गृहस्थ और सन्यास के बीच चुनाव की दुविधा से जूझता एक नवयुवक कबीर से मार्गदर्शन लेने आता है।
जवाब देंहटाएंकब और क्या लिखा जाये, बहुत से कारक इसे प्रभावित करते हैं। क्वालिटी और क्वांटिटी दोनों का अलग महत्व है और ये हर इंडिविज्युअल पर निर्भर करता है कि उसके वरीयता क्रम में कौन सी चीज किस स्थान पर है। जैसा कि एक गाना भी है - यार दिलदार तुझे कैसा चाहिये... :)
जैसा कि पोस्ट में लिखा है ’कमेंट के बदले कमेंट की परिपाटी ने हिंदी ब्लॉग का बहुत नुक्सान किया है’ तो नुकसान को होते देखकर किनारा कर जाने की बजाय इस नुकसान की भरपाई करने लायक लेखन से करना मेरे विचार में ज्यादा श्रेयस्कर रहेगा।
स्वागत, शुभकामनायें
संजय जी, कहानी तो आपने सुनाई ही नहीं. :) खैर...मेरे वरीयता क्रम में हमेशा क्वालिटी ही रहती है और रहेगी. भले ही मेन्टेन न कर पाऊं :)
हटाएंऔर लेखन से किनारा केवल इसी कारण से नहीं किया है यह ऊपर लिख ही दिया है.
धन्यवाद एवं आभार
कहानी जल्दी ही सुनाई जायेगी।
हटाएंलेखन से किनारा करना भी नहीं है, इसीलिये लिखे होने के बाद भी याद दिलाया :)
यार दिलदार तुझे कैसा चाहिये...ये विधा ही स्वच्छंद लेखन के लिए है...इस लिए आपके विचारों का स्वागत करता हूँ...तभी लिखिए जब दिल करे...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद Vaanbhat जी. :)
हटाएंपुण्य का काम किया फ़िर से लिखना शुरु करके। लिखना सिर्फ़ लिखना होता है। अच्छा/खराब तो लिख जाने के बाद पता लगता है।
जवाब देंहटाएंलिखते रहिये- बिन्दास।
बिलकुल बिंदास ही लिखता रहूँगा सर. धन्यवाद :)
हटाएंबहुत से लोगों का ब्लॉग से पलायन कहलाने लगा था.. उनमें से एक आप भी हैं.. बहुतों का लिखना कम हुआ (मुझे मिलाकर) बहुत अखरता था.. लोग फेसबुक पर बहुत व्यस्त हो गए, अच्छा लगता था लेकिन सालता भी था कि जब हम वहाँ हैं तो यहाँ क्यों नहीं!!
जवाब देंहटाएंआपका यह पुनरागमन एक शुभ संकेत है..
लिखना शुरू करेंगे तो विचार स्वतः आटे जायेंगे मस्तिष्क में.. आशा है हमें लगभग ब्लॉग पर लगभग नियमित पढ़ने को मिलता रहेगा,
कोशिश करूँगा कि लगभग नियमित लिखता रहूँ. :) बहरहाल आपका आभार सर.
हटाएंApne blog mein apni prashansa to har koi karta hai aur yeh aam aur "ubaaoo" baat bhi hai. Aapki khaas baat yeh hai ke aapne apne blog mein apni hi ninda adhik kee hai...jo mujhe bahot "rochak" lagi........ jaise ....."नाम तो रख लिया पर साधना जैसा कुछ भी नहीं था"...."चूँकि मैं न तो शब्दों का धनी हूँ और न ही कहीं से साधक हूँ"...."न तो नियमित रूप से ब्लॉग लिखता हूँ और न ही दुसरे ब्लॉग्स पर टिप्पणी करता हूँ इसलिए मैं खुद को ब्लॉगर के बजाय "लगभग ब्लॉगर" मानता हूँ"...."फिर स्वभाव से ही आलसी हूँ "....."मुझमें इतनी प्रतिभा भी नहीं है कि निरंतर सृजन करता रहूँ".... p:-)
जवाब देंहटाएंकम ही लिखें, सटीक लिखें तो बेहतर है...अपने विचारों को माध्यम बनाकर अपनी बात अब ब्लॉग से आप आसानी से पहुंचा सकते हैं...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
टिप्प्णी करने में हिचक तो हो रही है पर किसी की सच्ची बातों से सहमत हुआ जा सकता है..
जवाब देंहटाएंगुड !! मंगलकामनाएं यार
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