शनिवार, 13 नवंबर 2010

यह अपना क्षेत्र नहीं है...

उस दिन की बात है। मैं चौराहे की चाय की दुकान के सामने खड़ा था। इंजीनियरिंग के कुछ छात्र भी वहाँ चाय की चुस्कियाँ मार रहे थे। तभी एक बाइक में दो पुलिस वाले वहाँ आए। एक तो पास की पान की दुकान की तरफ बढ़ गया, दूसरा जिसके हाथ में एक रज़िस्टर था उन लड़कों के पास आया। कुछ क्षण वह खड़ा होकर अपने रज़िस्टर में देखता रहा फिर उन लड़कों से मुख़ातिब होकर कहा- 

"आप लोग कहाँ रहते हैं?"

"साकेत नगर में!" एक ने कहा।

"क्या करते हो?"

"जी, हम लोग स्टुडेँट हैं, बी. ई. कर रहे हैं।" दूसरे ने कुछ हिचकिचाते हुए कहा।

"तो किराये से रहते होगे?"

"जी सर!" लड़को के साथ मैं भी सोच रहा था कि ये सब क्यों पूछा जा रहा है।

"आप लोगों ने पुलिस थाने में अपनी डिटेल्स दर्ज करवायी है?"

"जी..." लड़के एक दुसरे का मुंह देख रहे थे।

"अच्छा आपने अपने मकान मालिक को अपनी फोटो और एड्रेस वगैरह दिया है?"

"हाँ सर" एक लड़के ने धीरे से कहा, बाकी चुप रहे।

"देखिये घबराइये नहीं, आप लोगों को तो पता ही होगा कि हर मकान मालिक के लिए अपने किरायेदार की पूरी जानकारी थाने मे लिखवाना जरूरी होता है। आजकल वारदात बहुत हो रहे हैं न बेटा।" लड़कों ने सर हिलाया।

"लेकिन ज्यादातर मकान मालिक ऐसा करते नहीं है। अब कल को कुछ हुआ तो परेशान तो आपको ही होना पड़ेगा न? पर ये समझते ही नहीं हैं।"

"सही बात है सर।" लड़के सोच रहे होंगे कहाँ से आफ़त गले पड़ गई।

"इसीलिए हम लोग खुद ही घर घर जाकर जानकारी जुटा रहे हैं। और इसमे घबराने की कोई बात नहीं है भई ये आप लोगो की सुरक्षा के लिए ही कर रहे हैं।"

"हाँ सर ये तो है।" एक लड़के ने दांत निपोरे। उस पुलिस वाले को इतने प्यार से समझाते देख मुझे जाने क्यों अच्छा लग रहा था।

"बस आप लोगो को एक फोटो देना पड़ेगा और ये फार्म भरना पड़ेगा।" वो अपने रज़िस्टर से फार्म निकालने का उपक्रम कर ही रहा था कि उसका साथी आ गया।

"अरे ये अपने थाना क्षेत्र में नहीं आता, ’बाग मुगालिया’ में आता है।" उसने पहले पुलिस वाले को जानकारी दी।

"अच्छा अपने क्षेत्र में नहीं है?" उसने पहले अपने साथी को देखा फिर लड़कों की ओर देख कर कहा-

" अरे सॉरी सॉरी बेटा, कोई बात नहीं है। कुछ नहीं-कुछ नहीं आप लोग आराम से चाय पियो।"

लड़कों ने राहत की साँस ली और फिर से चाय सिगरेट पर ध्यान केंद्रित कर लिया। दोनो पुलिसिये लड़कों से दूर जाकर सुकून से बैठ गए। एक ने सिगरेट सुलगायी और जोर से आवाज़ लगायी-

"छोटू दो स्पेशल चाय दे फटाफट..."


14 टिप्‍पणियां:

  1. ज़रूर झक्की पुलिसिया रहा होगा. दूसरा काम नहीं था उसे !

    जवाब देंहटाएं
  2. सुखद आश्चर्य... पुलिस वाले ने अच्छे से बात की.. वो भी इंजीनियरिंग के छात्रों से!!!
    पुलिस वालों के बारे में परसाई जी कहते हैं.." इस देश में कोई अपराध 'उनकी' जानकारी और सहयोग के बिना नहीं होता जिन पर उसे रोकने की जिम्मेदारी है.."
    बढ़िया observation...
    अगली "चुस्की" के इंतज़ार में..
    -विनायक

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सोचनीय लेख। बधाई!!!

    जवाब देंहटाएं
  4. Jaise hi use malum chala ki ye uska area nahi hai uska interest khatm ho gaya. Shayad isliye ki use iska cradit nahi milta.

    Good one n very true... Cograts.

    जवाब देंहटाएं
  5. @ काजल जी
    निश्चित रूप से वह पुलिसिया झक्की ही था, पर शायद उसे यही काम दिया गया था।

    यहाँ आने, इसे पढ़ने और टिप्पणी करने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. @ विनायक एवं नवीन
    उत्साहवर्धन एवं सहयोग के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  7. @ रूपा जी
    आपने इस प्रसंग को पढ़कर बहुत
    अच्छा निष्कर्ष निकाला है। उस वक्त
    मैने भी लगभग यही बात सोची थी।
    टिप्पणी के लिए धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  8. बिल्कुल सच है ऐसा अक्सर होता है.

    जवाब देंहटाएं
  9. 4.5/10

    बढ़िया लिखा है आपने.
    लेकिन क्लाईमेक्स बहुत ठंडा रहा.
    जरूर पुलिस वाला झक्की तो था ही साथ में अल्कोहल का सुरूर भी रहा होगा. वरना कभी भी पुलिस आईडेटींफिकेशन के लिए इस तरह रजिस्टर लेकर नहीं घूमती. मकानमालिक को ही फार्म लाना पड़ता है और तमाम औपचारिकताओं के साथ व फोटो लगाकर तीन कापी जमा करना पड़ता है साथ ही सेवा शुल्क (नियमतः शुल्क नहीं है) सौ-डेढ़ सौ रुपया देना पड़ता है.

    जवाब देंहटाएं
  10. उस्ताद जी इस पोस्ट की समीक्षा करने और इसकी कमियां बताने के लिए आभार. यह स्वीकार करने में मुझे कोई हर्ज़ नहीं है कि यह एक कमज़ोर रचना है. आपकी दी गई रेटिंग से संतुष्ट हूँ, यदि मैने खुद रेटिंग की होती तो शायद 10 में 3 ही देता.शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  11. भले ही आपकी यह लघु-कथा असरदार न बन पायी हो, लेकिन आपके पास मौलिक विचार भी हैं और लेखन का सलीका भी है.
    अगर असर इसमें नहीं आ पाया तो कोई विशेष बात नहीं, किसी और रचना में असर पैदा हो जाएगा. बस 4.5 अंक इसी बात के हैं.

    जवाब देंहटाएं
  12. उस्ताद जी आपके शब्दों ने मेरा बहुत उत्साह बढ़ाया है। इन शब्दों के लिए धन्यवाद। कोशिश करूँगा कि आगे यहाँ कुछ बेहतर लिखूं।

    जवाब देंहटाएं
  13. यह तो एक साधारण घटना थी,पुलिसवाले तो 'हत्या'या घायलावस्था जैसे संगीन मामलों में भी अपना 'हलका'देखते हैं.हाँ , कहीं से कुछ वसूली हो तो यह शर्त नहीं लागू होती !

    जवाब देंहटाएं

आपकी आलोचनात्मक टिप्पणियों और सुझावों का स्वागत है। यदि आपको कोई बात बुरी या आपत्तिजनक लगी हो अथवा आप मेरे विचारों से सहमत न हों तो भी अवश्य टिप्पणी करें। कोई भी टिप्पणी हटाई नहीं जायेगी बशर्ते उसकी भाषा शिष्ट हो।