सर्वप्रथम सभी साथियों और वरिष्ठजनों को नववर्ष 2011 की अग्रिम शुभकामनाएँ... आप सभी के लिए आने वाला यह साल मंगलमय रहे यही कामना करता हूँ आज प्रस्तुत है मेरी एक पुरानी ग़ज़लनुमा रचना। हालांकि मेरे लिए तो यह ग़ज़ल ही है पर उस्तादों के लिए जाने क्या हो। उम्मीद है आप इसकी कमियों से मुझे अवगत कराएँगे।
फिर सुनाओ यार वो लम्बी कहानी
भूल न जाएँ कहीं कल की निशानी
तुम तो जी लोगे मगर उनका भी सोचो
रोज कुआं खोद जो पीते हैं पानी
फूल से ज्यादा उगा रक्खे हैं काँटे
जाने कैसी कर रहे वे बागवानी
आपको लगता है आप हैं फ़रिश्ता
आपको भी हो गई है बदगुमानी
उनको कुछ भी याद अब आता नहीं
हमको बातें याद हैं सारी पुरानी
और लोगो को भले फुसला ही लो
खुद से तुम न कर सकोगे बेईमानी
भूल न जाएँ कहीं कल की निशानी
तुम तो जी लोगे मगर उनका भी सोचो
रोज कुआं खोद जो पीते हैं पानी
फूल से ज्यादा उगा रक्खे हैं काँटे
जाने कैसी कर रहे वे बागवानी
आपको लगता है आप हैं फ़रिश्ता
आपको भी हो गई है बदगुमानी
उनको कुछ भी याद अब आता नहीं
हमको बातें याद हैं सारी पुरानी
और लोगो को भले फुसला ही लो
खुद से तुम न कर सकोगे बेईमानी