रोज सुबह अखबार पढ़ना मुझे भी पसंद है। ज्यादा नहीं तो कम से कम एक अखबार तो होना ही चाहिए। पर अक्सर अखबार पढ़कर बहुत चिंतित हो जाता हूँ। ये चिंता दोहरे स्तर पर होती है। एक तो बड़े बड़े घोटालों, घपलों, मंहगाई, अन्याय और राजनैतिक दांव-पेंच की खबरें परेशां करती ही हैं, देश और समाज की चिंता हो आती है। पर दुसरे स्तर कि चिंता अधिक भयावह होती है। जिससे कि मैं खुद को अधिक जुड़ा महसूस करता हूँ। हर दिन शहर में दो चार रोड एक्सीडेंट होते ही हैं। रोज किसी न किसी के मारे जाने कि खबर छपती है। पढ़कर डर लगता है कि कभी मेरे साथ या मेरे अपनो के साथ भी तो ऐसा हो सकता है। फिर चैन स्नेचिंग, लूट, चोरी, ठगी आदि की खबरें भी छपती हैं और मैं फिर डरता हूँ कि कितने असुरक्षित हैं हम। कोई बड़ा हादसा शहर में घटित होता है तो उसका ब्योरा अखबार में पढ़कर एक किस्म का डर सा लगता है कि ऐसा तो हमारे साथ भी हो सकता है
एक बार तो मैंने यह तय किया था कि अखबार में ये अपराध और दुर्घटनाओं याली खबरें पढूंगा ही नहीं। पढ़ना ही हुआ तो सिर्फ हैडिंग ही पढूंगा। कुछ दिन तो यह सिलसिला चला पर फिर मैंने सोचा कि आँखें बंद करने से हकीकत तो नहीं बदल जाएगी। और कब तक ऐसे डर- डर कर जिया जा सकता है। और सच तो ये भी है कि भले ही डर लगे लेकिन ऐसी सनसनी वाली खबरें पढ़ने से खुद को रोक भी नहीं पाता। फिर हर बार ये खबरें पढ़कर कुछ न कुछ सबक तो मिलता ही है कि क्या सावधानी बरतनी चाहिए। कुछ भी हो अखबार पढ़ना तो हम नहीं छोड़ेंगे।
पर कभी कभी ऐसी खबरें भी पढ़ने को मिल जाती हैं जो गुदगुदा जाती हैं। ऐसी ही एक खबर पर दो दिन पहले नज़र पड़ी। भोपाल के किसी पति की दास्ताँ थी ये बेचारा किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी मे काम करता है और जिस दिन भी वो सात बजे तक घर नहीं आ पता था उसे रात बाहर गुजारनी पड़ती थी। पत्नी घर में घुसाने ही नहीं देती थी न। पर क्यों आखिर? दर असल इन्होने प्रेम-विवाह किया था और शादी से पहले लडकी ने लड़के से स्टाम्प पेपर में अपनी कुछ शर्तों मे साइन करवा रखा था। उन्ही में से एक शर्त थी कि यदि लड़का सात बजे तक घर नहीं आया तो लड़की उसे घर में घुसने नहीं देगी। कुछ और शर्तें भी देख लें
एक समय खाना मैं बनाउंगी, एक समय तुम।
रात नौ के बाद घर में टी.वी. नहीं चलाओगे।
शराब पूछ कर पीओगे।
मां से नहीं मिलने जाओगे
पहले तुम्हारे रुपयों से घर खर्च चलाया जाएगा फिर मेरे रुपयों से
मकान मेरे नाम पे खरीदोगे
इत्यादि...
लड़के ने सोचा होगा कि मज़ाक कर रही है फिर प्यार का भूत भी रहा होगा सो उसने सब स्वीकार कर लिया। कुछ महीने तो ठीक चला पर उसके बाद बीवी ने बाकायदा सारी शर्तों का पालन करना शुरू कर दिया। कई बार घर आने पर वो सूंघ कर देखती कि कहीं शराब पीकर तो नहीं आया। एक बार तो शक होने पर ब्लड टेस्ट भी करवा लिया था। जब लड़के ने कई रातें स्टेशन में गुजारीं तब उसके बर्दाश्त के बाहर हुआ। उसने सीधे सीएसपी को फोन लगाया और धमकी दी कि यदि उन्होंने मामला नहीं सुलझाया तो वो आत्महत्या कर लेगा। पुलिस ने दोनों को बुलवाकर परामर्श किया और कुछ समझौता करवाया।
बेचारा लड़का वो तो बस यही गाता रहता होगा- "जोर का झटका हाय जोरों से लगा, शादी बन गयी उम्रकैद की सज़ा...
इस खबर को पढ़कर थोड़ा अच्छा भी लगा कि अब लडकियां भी अपने शर्तों पर शादी कर रही हैं, पतियों की मनमानी अब नहीं चलेगी। पर उस पति पर तरस भी आया। अब सारे पुरुषों का बदला उस बेचारे से लिया जाए ये भी तो उचित नहीं है न?
शुक्र ये है कि इसे पढ़कर मुझे डर नहीं लगा कि ऐसा मेरे साथ भी हो सकता है क्योंकि संयोग से मैं पहले से ही शादीशुदा हूँ और सौभाग्य से मैंने ऐसी किन्ही शर्तों पर शादी नहीं की है। फिर हमारी आपसी अंडरस्टेंडिंग इतनी बुरी नहीं है कि ऐसी नौबत आए।
(कम से कम मैं तो यही समझता हूँ)
हाँ ये खबर शादी के पहले पढ़ ली होती तो शायद डरके मारे शादी ही नहीं करता।
(अब ये भी दिल को बहलाने वाली बात है, वरना क्या शादी के पहले ऐसी बातें नहीं सुनी थी?)
अब एक बात और मेरे दिमाग में घूम रही है पति पत्नी के सारे चुटकुलों में पति को ही बेचारा क्यों बताया जाता है? कहीं वो पत्नी के ज्यादा बोलने से पीड़ित है, कहीं उसके टोकने से, कहीं उसके मोटापे से, कहीं झगडालूपन से तो कहीं उसके देहातीपन से। और तो और इन सारे चुटकुलों में पत्नी नामक प्राणी को निहायत ही बेवक़ूफ़ और बातूनी बताया जाता है। क्योंकर?