उसे ऑफिस जाने के लिए देर हो रही थी। जल्दी से कमरे में ताला लगाकर वह सड़क पर आया। बाहर बारिश हो रही थी। अपना छाता खोलकर वह कीचड़ से बचते हुए सधे कदमों से बस स्टॉप की ओर बढ़ा। तभी उसके कानों में एक आवाज़ आई- "बेटा, मुझे जरा मंदिर तक छोड़ देना", उसने देखा गंदे चीथड़े पहना हुआ वह बूढ़ा भिखारी था जो अक्सर उसे नज़र आता था, कभी मंदिर के सामने तो कभी घरों के सामने भटकता हुआ। मंदिर बस स्टॉप के सामने ही था। "ठीक है, आ जाओ", उसने सोचा बस स्टॉप तक छोड़ दूंगा, वहाँ से वो चला जायेगा।
जैसे ही वह बूढ़ा उसके छाते के नीचे आया उसके नाक में तीखी बदबू का एक झोंका आया... उफ़ ! लगता है महीनों से नहीं नहाया, उसने सोचा और वितृष्णा से मुंह मोड़ लिया। बूढ़ा कमजोर था और थोड़ा लंगड़ा भी रहा था, जिसकी वजह से उसकी चाल बहुत धीमी थी। उसे बदबू की वजह से वैसे ही खीझ हो रही थी, धीमी चाल ने आग में घी का काम किया। "थोड़ा तेज चलो, मुझे देर हो रही है", वह लगभग चिल्ला उठा। "इससे तेज नहीं चल सकता बेटा" बूढ़े ने कराहते हुए कहा। वह चुप रहा और मुंह फेर कर चलता रहा। पर उसे वैसे ही देर हो रही थी, डर था कहीं सामने से ही सिटी बस निकल गई तो फिर अगली बस का इंतजार करना पड़ेगा। दो- तीन सौ मीटर की दूरी उसे मीलों की लग रही थी। आखिर उसका धैर्य जवाब दे गया। "आप किसी और के साथ आ जाना, मुझे देर हो रही है।" यह कह कर वह बूढ़े को वहीँ छोड़कर तेजी से आगे निकल गया।
ऑफिस में काम करते हुए अचानक उसे उस बूढ़े का ध्यान आ गया, और अचानक ही उसका मन ग्लानि से भर गया। मुझे उसे इस तरह छोड़कर नहीं आना चाहिए था। बीमार लग रहा था, बारिश में भीगने से और बीमार न हो जाये। पांच मिनट में भला क्या फर्क पड़ जाता। इतना गुस्सा नहीं करना था, आखिर वह भी हालात का मारा था। कहीं मर न जाए... इन सब ख्यालों से वह विचलित हो गया। पूरे दिन उसे रह रह कर उस बूढ़े का ख्याल आता रहा।
शाम को जैसे ही वह ऑफिस से लौटकर बस से उतरा, सीधे मंदिर की तरफ बढ़ा, वहाँ वह भिखारी बैठकर बदस्तूर भीख मांग रहा था। उसे सही सलामत देखकर उसके जान में जान आ गई। वह घर की ओर लौट चला। पहुँचते पहुँचते उसे उसके देह की गंध याद आ गई, और एक बार फिर मन वितृष्णा से भर उठा... छी, कितनी बुरी बदबू थी, कितना गन्दा रहता है वह। अगर जरा देर और उसके साथ रहता तो बदबू से ही मर जाता... उसे एक उबकाई सी आई, और गला खखारकर उसने सड़क किनारे थूक दिया- आक्थू...
-सोमेश
(नवम्बर 2015 में मेरी फेसबुक वॉल पर प्रकाशित)
जैसे ही वह बूढ़ा उसके छाते के नीचे आया उसके नाक में तीखी बदबू का एक झोंका आया... उफ़ ! लगता है महीनों से नहीं नहाया, उसने सोचा और वितृष्णा से मुंह मोड़ लिया। बूढ़ा कमजोर था और थोड़ा लंगड़ा भी रहा था, जिसकी वजह से उसकी चाल बहुत धीमी थी। उसे बदबू की वजह से वैसे ही खीझ हो रही थी, धीमी चाल ने आग में घी का काम किया। "थोड़ा तेज चलो, मुझे देर हो रही है", वह लगभग चिल्ला उठा। "इससे तेज नहीं चल सकता बेटा" बूढ़े ने कराहते हुए कहा। वह चुप रहा और मुंह फेर कर चलता रहा। पर उसे वैसे ही देर हो रही थी, डर था कहीं सामने से ही सिटी बस निकल गई तो फिर अगली बस का इंतजार करना पड़ेगा। दो- तीन सौ मीटर की दूरी उसे मीलों की लग रही थी। आखिर उसका धैर्य जवाब दे गया। "आप किसी और के साथ आ जाना, मुझे देर हो रही है।" यह कह कर वह बूढ़े को वहीँ छोड़कर तेजी से आगे निकल गया।
ऑफिस में काम करते हुए अचानक उसे उस बूढ़े का ध्यान आ गया, और अचानक ही उसका मन ग्लानि से भर गया। मुझे उसे इस तरह छोड़कर नहीं आना चाहिए था। बीमार लग रहा था, बारिश में भीगने से और बीमार न हो जाये। पांच मिनट में भला क्या फर्क पड़ जाता। इतना गुस्सा नहीं करना था, आखिर वह भी हालात का मारा था। कहीं मर न जाए... इन सब ख्यालों से वह विचलित हो गया। पूरे दिन उसे रह रह कर उस बूढ़े का ख्याल आता रहा।
शाम को जैसे ही वह ऑफिस से लौटकर बस से उतरा, सीधे मंदिर की तरफ बढ़ा, वहाँ वह भिखारी बैठकर बदस्तूर भीख मांग रहा था। उसे सही सलामत देखकर उसके जान में जान आ गई। वह घर की ओर लौट चला। पहुँचते पहुँचते उसे उसके देह की गंध याद आ गई, और एक बार फिर मन वितृष्णा से भर उठा... छी, कितनी बुरी बदबू थी, कितना गन्दा रहता है वह। अगर जरा देर और उसके साथ रहता तो बदबू से ही मर जाता... उसे एक उबकाई सी आई, और गला खखारकर उसने सड़क किनारे थूक दिया- आक्थू...
-सोमेश
(नवम्बर 2015 में मेरी फेसबुक वॉल पर प्रकाशित)
कहानी की समझ तो नहीं है फिर भी अंत कमजोर लगा , रिपीट लगा पहला भाग , अगर दिल में नरम कोना था भी तो फिर वितृष्णा कैसी ... बहरहाल एक पक्ष ये भी की मदद करने वालों की कमी नहीं पर चाहकर भी न कर पाने का दुख तो है ही
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया अर्चना जी। मैंने अलग अलग परिस्थिति में मानवीय व्यवहार और संवेदना में बदलाव को चित्रित करने की कोशिश की थी। उसे जो ग्लानि हो रही थी वह भिखारी को उसी हाल में देखकर दूर हो गई। ग्लानि क्षणिक थी जबकि वितृष्णा स्थायी।
हटाएंयदि यह लघुकथा ठीक से सम्प्रेषित नहीं हई तो यह मेरे लेखन की कमज़ोरी है।
किन्तु मै इस बदलते व्यवहार को समझ पा रही हूँ | ऐसा होता है |
हटाएंजी अंशुमाला जी, यह लघुकथा मेरे देखे हुए अनुभव पर आधारित है। ऐसा अक्सर होता है। टिप्पणी के लिए शुक्रिया।
हटाएंयह अस्थिर मानसिकता की द्वंदात्मक अभिव्यक्ति को दिखाने वाली कहानी है.
जवाब देंहटाएंजी, सही कहा आपने। शुक्रिया टिप्पणी के लिए।
हटाएंयह अस्थिर मानसिकता की द्वंदात्मक अभिव्यक्ति को दिखाने वाली कहानी है. रिपीट किया मैंने.
जवाब देंहटाएंजी, सही किया। शुक्रिया आपका :)
हटाएंअन्तर्राष्ट्रीय ब्लोगर्स डे की शुभकामनायें ..... हिन्दी ब्लॉग दिवस का हैशटैग है #हिन्दी_ब्लॉगिंग .... पोस्ट लिखें या टिपण्णी , टैग अवश्य करें ......
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं के लिए धन्यवाद संगीता जी। आपको भी शुभकामनाएँ।
हटाएंलगा पढी हुई है....बाद में नीचे डिस्क्लेमर देखा
जवाब देंहटाएंप्रणाम
जी, आपने फेसबुक पर पढ़कर इस पर टिप्पणी भी की थी। :)
हटाएंबेहतरीन कहानी लिखी और कहानी में प्रयोग भी किया जाना उचित है.
जवाब देंहटाएं#हिंदी_ब्लागिँग में नया जोश भरने के लिये आपका सादर आभार
रामराम
०९९
शुक्रिया :)
हटाएंआपका भी आभार इस जोश के प्रणेता बनने पर।
.
जवाब देंहटाएं.
.
ये दिल-दिमाग भी ना...
...
दिलो दानिश का ही खेल है सारा :)
हटाएंमन ऐसा ही अस्थिर होता है, जिसका बेसब्री से इंतज़ार करते हैं, उसके आने पर पीठ फेर ली जाती है ।
जवाब देंहटाएंशायद भिखारी को बीमार देखने की आशंका थी,उसे ठीक देखते ही सारी भावनाएं लौट आईं ।
जी रश्मि दी। यही दिखाना चाहा था मैंने।
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ☺
हटाएंहिन्दी ब्लॉगिंग की गति बनाये रखने हेतु आपका प्रयास सराहनीय है -शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पाबला जी। ☺
हटाएंअंतरराष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉग दिवस पर आपका योगदान सराहनीय है. हम आपका अभिनन्दन करते हैं. हिन्दी ब्लॉग जगत आबाद रहे. अनंत शुभकामनायें. नियमित लिखें. साधुवाद.. आज पोस्ट लिख टैग करे ब्लॉग को आबाद करने के लिए
जवाब देंहटाएं#हिन्दी_ब्लॉगिंग
धन्यवाद सर। आपका भी अभिनन्दन करता हूँ।
हटाएंकभी कभी मन ऐसी ही उलझन में उलझ जाता है पर आपकी कहानी के अंत की तरह असली रूप दिख ही जाता है ....
जवाब देंहटाएंजी हाँ निवेदिता जी, सही कहा आपने। शुक्रिया इस टिप्पणी के लिए।
हटाएंबढ़िया कहानी !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ☺
हटाएंआपने स्वार्थ और अपने जमीर के बीच की लड़ाई संप्रेषित की है ।
जवाब देंहटाएंजी, सही कहा आपने। शुक्रिया टिप्पणी के लिए।
हटाएंसोमेश जी,शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गगन जी।
हटाएंहिन्दी ब्लॉगिंग में आपका योगदान सराहनीय है , आप लिख रहे हैं क्योंकि आपके पास भावनाएं और मजबूत अभिव्यक्ति है , इस आत्म अभिव्यक्ति से जो संतुष्टि मिलेगी वह सैकड़ों तालियों से अधिक होगी !
जवाब देंहटाएंमानते हैं न ?
मंगलकामनाएं आपको !
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
बिल्कुल मानते हैं सर। बहुत शुक्रिया।
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएंजय हिंद...जय #हिन्दी_ब्लॉगिंग...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...जय #हिन्दी_ब्लॉगिंग
हटाएंमानव मन ऐसे कई विरोधी विचारों का जन्मस्थल है. एक विचार इधर खींचता है तो दूसरा उधर, लेकिन रहते दोनों ही हैं एक साथ. इस कहानी में भी इनका स्वाभाविक पुट है. अच्छी लगी यह लघुकथा!!
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने सलिल जी. लघुकथा पसंद करने के लिए धन्यवाद...
हटाएंमन और मस्तिष्क की जंग संवेदना पर यथार्थ हावी है ... अच्छी लघुकथा
जवाब देंहटाएंसही निष्कर्ष निकाला आपने. लघुकथा पसंद करने के लिए धन्यवाद संगीता जी.
हटाएंNice and good article. It is very useful for me to learn and understand easily. Thanks for sharing your valuable information and time. Please Read: Pati Patni Jokes In Hindi, What Do U Do Meaning in Hindi, What Meaning in Hindi, Pati Patni Jokes in Hindi Latest
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा लिखा गया आर्टिकल बहुत ही हाउसफुल है और लोगों को बहुत ही ज्ञानवर्धक एवं रोचक लगता है. वास्तव में इंटरनेट पर सर्च करते ही आपका आर्टिकल बहुत ही रोचक जानकारी के साथ इंटरनेट पर फैलाव कर रहा है. लेकिन इसमें सबसे अच्छी खासियत है किसके कंटेंट ओं क्वालिटी बेहतरीन है ठीक उतार-चढ़ाव इंटरनेट पर होता रहता है जैसे मैं कुछ उदाहरण आपके साथ साझा कर रहा हूं.
जवाब देंहटाएंदोस्तों ऐसा देखा जाता है कि आम जिंदगी में लोगों के उतार-चढ़ाव होता है. कभी सुख कभी दुख, कभी हंसी कभी खुशी, कभी हार कभी जीत, पता नहीं यह संसार का एक ऐसा नियम है? इस पर कोई भी पोजीशन निश्चित नहीं रहती है. कभी नीचे, कभी ऊपर, कभी नीचे, ऐसी घटना चक्र मानव जीवन का चलता रहता है.
चाहे हमारी संस्कृति के साथ हो, चाहे हमारे रीति रिवाज के साथ हो, चाहे हमारी अर्थव्यवस्था के साथ, अर्थव्यवस्था तो और भी ऐसा होता है कि कभी नीचे, कभी ऊपर, ठीक इसी प्रकार से आप पर, यदि इंटरनेट पर काम करते हो गूगल पर ब्लॉगिंग के माध्यम से काम करते हो, तो उसमें भी आपका कीवर्ड कभी नीचे कभी ऊपर, उदाहरण के तौर पर मैं कुछ जानकारी आपके साथ शेयर कर रहा हूं, जैसे पोर्न क्या होता है यह जानकारी पढ़ने योग्य है लेकिन इस पर भी उतार-चढ़ाव होता है
इंटरनेट पर उतार-चढ़ाव
जैसे मेरा एक कीबोर्ड है 2- रोल नंबर सर्च यूपी बोर्ड , एस कीवर्ड को लोग पहले बहुत ज्यादा सर्च करते थे. लेकिन हाल में कुछ कम हुए हैं और कभी ऊपर कभी नीचे, ऐसे तमाम प्रकार के सर्चस होते रहते हैं. ठीक उसी प्रकार से जैसे मेरे जीवनसाथी का नाम क्या है? जी हां जीवन साथी का नाम भी एक लोग सर्च करते हैं.
वह वास्तव में हमारा जीवन साथी का नाम हमारे होठों पर रहना चाहिए, और जैसे कि जब भी कोई बच्चा जन्म लेता है तो उसका नामकरण लोग करते हैं और इंटरनेट पर यह जानकारी सर्च करते हैं. आज जन्मे बच्चे का नाम क्या रखें? जन्मे बच्चे का नाम रखें?
ठीक उसी प्रकार से यदि खेतीवाड़ी से संबंधित जानकारी अर्जित करना चाहते हो, जैसे कि पंजीयन कैसे करें कैसे नहीं करें और विशेषकर लॉटरी सिस्टम भी ऐसा ही होता है कि आज के सट्टे का नंबर क्या है? क्या आज हमारे लिए नंबर लकी हो सकता है कौन सा नहीं हो सकता है ठीक इसी प्रकार से हमारे जीवन में उतार-चढ़ाव होता रहता है.
वाह बड़ी ही सुन्दर रचना है। बधाई हो आपको। Mahadev Pic
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