शनिवार, 5 मार्च 2011

तेरा क्या और मेरा क्या?

अस्सी और नब्बे के दशक में दूरदर्शन में ऐसे अनेक कार्यक्रम आया करते थे जिन्हें याद करके किसी का भी नॉस्टेलजिक हो जाना स्वाभाविक है मेरा भी बचपन और लड़कपन दूरदर्शन देखते हुए गुजरा है. ऐसे अनेक कार्यक्रम, धारावाहिक, शोज़, फ़िल्में, विज्ञापन इत्यादि हैं जो मुझे फिर उसी दौर में ले जाते हैं इनका रोमांच ही अलग है ऐसा ही एक कार्यक्रम था जो बच्चों के लिए आया करता था, हालांकि बहुत ज्यादा लोकप्रिय नहीं था, इसका नाम था 'टर रम टू' शायद आपको याद यह याद हो इसके प्रमुख पात्र थे नट्टू, हिसाबी, कटोरी, आज़ाद इत्यादि छोटी छोटी रोचक कहानियों और मजेदार संवादों के द्वारा इसमें बच्चों को गणित, सामान्य ज्ञान, अक्षर ज्ञान, नैतिक शिक्षा आदि सिखाया जाता था खेल खेल में सीखो के अंदाज में मुझे टर रम टू बहुत पसंद था हालांकि जिस आयुसमूह के बच्चों के लिए इसे बनाया गया होगा मैं उससे बड़ा ही था


पर आज इसे याद करने का कारण दूसरा है टर रम टू का एक टाइटल गीत भी था जिसके बोल थे - 'ये है टर रम टू रे भैया ये है टर रम टू' इसी गीत का एक अंतरा है जो पिछले कई सालों से मेरे जेहन में रह रह कर गूंजता रहता है वो कुछ ऐसा है-

यहाँ तेरा तो तेरा ही है...
और मेरा भी मेरा ही है...
पर तेरा भी मेरा ही है...
और मेरा भी तेरा ही है...
तो तेरा क्या और मेरा क्या...? 

आप ही देखिए इतने सरल और सीधे सादे शब्दों में कितनी गहरी बात कही गई है ऐसा उदाहरण कम से कम मुझे तो बहुत कम देखने को मिला है जब मैंने पहली बार इसे सुना था तब भी इससे प्रभावित हुआ था पर वक्त के साथ भूल गया था कुछ वर्ष पहले जब मैंने टर रम टू का पुनः प्रसारण देखा था तो ये पंक्तियाँ तुरंत मुझे आकर्षित कर गईं और तब से अब तक इन्हें भूल ही नहीं पाया हूँ

इन पक्तियों पर गौर कीजिए जरा तेरा और मेरा का फर्क ही यहाँ मिटा दिया गया है जो तेरा है वही मेरा है और जो मेरा है वही तेरा है मतलब सबकुछ हमारा है अब देखिए जितने भी लड़ाई झगड़े होते हैं उनके मूल में यही तेरा मेरा का भाव ही तो होता है न? मेरी जमीन-तेरी जमीन, मेरा पैसा-तेरा पैसा और मेरी जाति-तेरी जाति  से लेकर मेरा प्रदेश-तेरा प्रदेश, मेरी भाषा-तेरी भाषा , मेरा धर्म-तेरा धर्म और मेरा देश-तेरा देश तक हर जगह यही तो है अब यदि हम सारे विश्व को एक परिवार मान लें तो सोचिए कितनी शान्ति और अमन-चैन होगा यह बात हमारे ऋषि- मुनियों ने बहुत पहले ही कह दी है-

अयं निजः परोवेति गणना लघुचेतसाम 
उदारचरितानाम तु वसुधैव कुटुम्बकम

और यह बात इतने आसान शब्दों में बच्चो को जिस तरह बताई गई है वह काबिले तारीफ़ है तेरा और मेरा के अतिरिक्त केवल कुछ सहायक शब्दों का ही प्रयोग किया है, कोई भी भारी भरकम शब्द नहीं है जब भी मैं इसे याद करता हूँ तो बरबस मुंह से वाह निकल जाता है

गायत्री परिवार का एक स्लोगन याद आ रहा है- "जो कुछ बच्चों को सिखाते हैं यदि बड़े उस पर स्वयं अमल करें तो यह संसार स्वर्ग हो जाए" इस गीत पर भी यह बात लागू होती है मैं सोच रहा हूँ यदि हम सब सच में इन पंक्तियों पर गौर करें और तेरा-मेरा से जरा सा ऊपर उठ जाएं तो यह दुनिया सच में पहले से कहीं ज्यादा सुन्दर हो जाएगी। आमीन......


पुनश्च: टर रम टू के निर्माता-निर्देशक कौन थे और इस गीत की रचना किस ने की है, इस प्रश्न का उत्तर मुझे न तो गूगल बाबा दे पाए और न ही विकिपीडिया महाराज आप में से कोई इस सम्बन्ध में कुछ बता सके तो आभारी रहूँगा। धन्यवाद। 

45 टिप्‍पणियां:

  1. मेरा तो मेरा है ही
    जो तेरा है उसे कैसे छीन लूं
    मेरा मुझसे ना छिन जाए
    इसी फिकर में जिन्दगी बीत जाती है

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  2. आपकी पृच्छा से तो मैं भी अनभिज्ञ हूँ -मगर कार्यक्रम की क्षीण सी स्मृति है ....
    संस्कृत के इंगित श्लोक से पूरा भाव स्पष्ट है -एक उपनिषदीय ज्ञान यह भी है तत त्वम् असि ....मातब एक दूजे में भी कोई भेद नहीं है ...यह मनुष्य की उदात्त अभिलाषा है और मनुष्यता का प्राप्य भी !हमारा अभीष्ट भी !

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  3. ईश्वर करे आपकी चाहत के अनुरुप बडों की दुनिया से भी तेरा-मेरा का यह फर्क समाप्त हो । आमीन...

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  4. सरल तरल शब्दों में दर्शन के बीज बिखेरे हैं।

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  5. ये वो दौर था जब कार्यक्रम परिवार के हिसाब से बनाये जाते थे, आज परिवार कार्यक्रमों के अनुरूप बन रहे हैं। संदर्भित कार्यक्रम की तो ध्यान नहीं, लेकिन अन्य लोकप्रिय कार्यक्रमों के अतिरिक्त भी ’कथासागर’ ’लोकलोक की बात’ जैसे कार्यक्रम भुलाये नहीं जाते। मुझे जो सबसे ज्यादा याद आता ऐ, वो है ’तलाश’ सीरियल का टाईटिल सांग - ’कभी हादसों की डगर मिले, कभी मुश्किलों का सफ़र मिले, ये चिराग हैं मेरी राह के, मुझे मंजिलों की तलाश है’ विडंबना ये है कि बहुत तलाशा लेकिन ये ही नहीं मिला:)
    इस पोस्ट में आपने जिन पंक्तियों को याद किया है, वे भी बहुत अर्थपूर्ण हैं और वाकई सरल शब्दों में।
    ले गये बीस बाईस साल पुराने दौर में, लौटने में समय लगेगा:)

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  6. लगता है हम सुधर रहे हैं वरना तो गीत के बोल और उसका अर्थ , ना ना

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  7. टर रम टू- एन सी आर टी का प्राडक्शन था.

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  8. एन सी ई आर टी- National Council of Educational Research and Training

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  9. bahut khub...tumhara ye sakaratmak najriya yuva pidi ko sahi disha dikhayega,,,m proud of u bro,,,,it is the best post of urs.

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  10. सुखद चिन्तन,सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|

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  11. बहुत सुंदर... लेकिन हमारे घर मे तो टी वी ही नही था उस समय

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  12. दूरदर्शन के धारावाहिक एक पूरी नॉस्टैल्जिक जर्नी का नाम है... सई परांजपे, अमल अल्लाना, सिद्धार्थ काक, म.श्या.जो, आनंद महेंद्रू, पंकज पराशर,श्याम बेनेगल और न जाने कितने नामआज भी मानस पटल पर अंकित हैं.. आजइतने सीरियल्स की भीड़ में हमलोग अपनी ही बुनियाद खो बैठे हैं. टर्रम टू एन.सी.आर.टी.की प्रस्तुति थी. लेकिन और कुछ भी याद नहीं.
    संदेश तो हर कार्यक्रम में छिपा था. आज वो बात नहीं. संजय बाऊजी के अनुसार इस बातपर तो हम छाती ठोंककर कह सकते हैं कि हमारे ज़अमाने की बात ही कुछ और थी!

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  13. अरे भाई मैं तो टेलीविजन देखता नहीं हूँ लेकिन आपने एक दार्शनिक भाव को हमारे सामने रखा है ...आपका आभार

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  14. aapne sahi likha hai ki vasudhaiv kutumkam ka paalan sab log karne lagen to yeh jhagde sire se khatm ho jaayen.

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  15. यहाँ तेरा तो तेरा ही है...
    और मेरा भी मेरा ही है...
    पर तेरा भी मेरा ही है...
    और मेरा भी तेरा ही है...
    तो तेरा क्या और मेरा क्या...?

    kash ye baat har koi samjh jata to jhagda kis baat ka reh jata dost ?

    sandesh deti rachna ab dekho kitno ko?

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  16. अलग संदर्भ में कही जाने वालर बचपन की बात याद आई- 'मेरा नाम मैं, तेरा नाम तू, मैं बुद्धू कि तू'

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  17. @ अन्तर सोहिल जी
    सही कह रहे हैं आप ज्यादातर लोगों की जिन्दगी इसी फ़िक्र में गुजरती है.
    आभार कि इस बार आपने इस अनुज को प्रणाम करके शर्मिंदा नहीं किया.

    @ अरविंद मिश्रा जी
    'तत त्वम् असि' इस सूत्र के लिए धन्यवाद.

    @ सुशील बाकलीवाल जी
    आपके साथ हम भी आमीन कह रहे हैं, आभार.

    @ प्रवीण पाण्डेय जी
    धन्यवाद आपका.

    @ संजय जी
    मेरी सूची में भी कई ऐसे कार्यक्रम हैं जो अब देखना चाहता हूँ पर मिलते ही नहीं.
    आप की तरह मुझे भी अतीत में लौटना पसंद है :)

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  18. @ सुनील कुमार जी
    सुधर रहे हैं तो ये अच्छा संकेत है. धन्यवाद.

    @ समीर लाल जी
    जानकारी के लिए धन्यवाद. मेरे ब्लॉग की 500वी और 501वी टिप्पणी आपने की
    है। सौभाग्य है मेरे लिए कि ये आपके करकमलों से हुआ. :)

    @ गोल्डी दीदी
    बहुत बहुत धन्यवाद. उत्साह बढाते रहिएगा मेरा. :)

    @ Patali-The-Village
    बहुत धन्यवाद.

    @ अरीबा जी
    धन्यवाद, स्वागत है आपका.

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  19. @ राज भाटिया जी
    धन्यवाद। टी वी हमारे घर में भी बहुत बाद में आया पर फिर भी बहुत से कार्यक्रम देखने को मिल गए थे।

    @ सलिल जी
    इतने नाम गिनकर आपने मुझे भी नॉस्टैल्जिक कर दिया। बेशक आपके और मेरे जमाने में सालों का फासला है पर मुझे भी बीता वक्त सुहाना लगता है।

    @ केवल राम जी
    धन्यवाद। वैसे कभी कभी टी वी देखना बुरा नहीं है, कुछ कार्यक्रम अच्छे भी आते हैं।

    @ भारतीय नागरिक
    मुझसे सहमति जताने के लिए आभार।

    @ मीनाक्षी पंत जी
    सारे लोग कहाँ संदेश ले पाते हैं? यदि ऐसा हो तो कहने की जरूरत ही क्यों पड़े। आभार आपका।

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  20. इस तेरा मेरा के फेर में पूरा संसार बंट गया ।

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  21. टर रम टू के बारे में न समझ है न जानकारी
    :-(
    मगर सरलता और सीधे सादे शब्दों के बारे में कुछ कह सकता हूँ सोमेश !

    अधिकतर लोग जब भी कुछ लोग लिखने बैठते है, एक अनजाना तनाव और सावधानी के साथ लिखते हुए, अपना ज्ञान उड़ेलने का प्रयत्न करते हैं ! "

    कहीं कोई गलती न रह जाए " का भाव सारे कथन / लेखन से उस व्यक्तित्व को बहुत दूर कर देता है, जिसने उसे लिखा है !

    यह अतिरिक्त सावधानी ही अक्सर उस लेख की सरलता समाप्त कर देती है उसके बाद वह लेख बाज़ार में लिखे जा रहे तमाम लेखों में शामिल हो जाता है !
    :-(
    शुभकामनायें आपको :-))

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  22. तेरा क्या और मेरा क्या" फिर भी छोटी छोटी चीज़ पर छोटी सी बात पर हम हो जाते हैं हम से तू। गीत बहुत अच्छा लगा। धन्यवाद।

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  23. जितने भी लड़ाई झगड़े होते हैं उनके मूल में यही तेरा मेरा का भाव ही तो होता है
    सुखद चिन्तन,सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद!!

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  24. टर रम टू का एक टाइटल गीत भी था....

    यह गीत तो मुझे याद नहीं लेकिन आपका लेख पढ़ कर वह विज्ञापन-गीत जरूर याद आ गया...
    ‘एक चिड़िया...अनेक चिड़िया...’

    सुन्दर संस्मरणात्क लेख के लिए बधाई।

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  25. @ satish g,,, maaf kijiyega agar lekh aam ho to kya wo apni mahatvta kho deta hai ?? kisi bhi lekh me chhupe sandesh ko likhne ke tarike se bandha nahi ja sakta uske liye to keval najriya chahiye.....

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  26. आपके ब्लॉग पर तो पहली बार आई, पर बहुत अच्छा लगा. आप अच्छा लिखते हैं.

    'पाखी की दुनिया' में भी तो आइये !!

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  27. हमारे बचपन में तो घर में टीवी ही नहीं था... इसलिए टीवी से लगाव आज तक नहीं हो पाया.. हाँ रेडियो की यादें बहुत हैं...
    उपन्यासकार समीर लाल 'समीर' को पढ़ने के बाद

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  28. पुराना सब कुछ अच्छा था,दूरदर्शन में सीमित कार्यक्रम थे जो खूब देखे जाते थे.आज कौन चित्रहार या रविवारीय फिल्म की राह तकता है ?

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  29. @ राहुल जी
    ये खेल तो हम भी खेला करते थे. बच्चों के खेल भी कई बार गहरे अर्थ रखते हैं.

    @ डॉ. दिव्या जी (Zeal)
    अभी तो और बँटेगा संसार यदि ये फेर ख़त्म न हुआ तो. धन्यवाद.

    @ सतीश सक्सेना जी
    आपके विचार महत्वपूर्ण हैं. संभवतः इन्ही कारणों से लेख/ कविता अपनी सरलता खो देती है.
    पर कहीं आपका आशय मेरे इस लेख से तो नहीं है न? :)

    @ निर्मला कपिला जी
    बिलकुल सही कह रही हैं आप. छोटी चीज़ें बड़े-बड़ों की पोल खोल देती है. जाने कब ये प्रवृत्ति दूर होगी?
    आभार आपका.

    @ मदन शर्मा जी
    हार्दिक धन्यवाद, स्वागत है आपका.

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  30. @ डॉ शरद सिंह जी
    वो गीत भी गजब का था. हार्दिक आभार.

    @ गोल्डी दीदी
    आपका ये सवाल जायज़ है, उम्मीद करता हूँ कि सतीश जी इस का जवाब देंगे.

    @ अक्षिता
    पाखी जी आपकी दुनिया में मैं आ चूका हूँ पर कुछ कहा नहीं था अबकी आऊंगा तो कुछ कह के भी जाऊँगा. आप आती रहिए और मम्मी-पापा को भी साथ लाइए कभी :)

    @ सतीश चन्द्र सत्यार्थी जी
    रेडियो की भी यादें हमारे पास भी हैं पर उतनी नहीं जितनी टी. वी. की हैं. स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर.

    @ संतोष त्रिवेदी जी
    सही कह रहें हैं आप. अब वो बात नहीं रही दूरदर्शन में.

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  31. @ पर कहीं आपका आशय मेरे इस लेख से तो नहीं है न?

    एकदम नहीं सोमेश ...

    तुम्हारे लेखन में यह सरलता है !
    मैं अपने को इस योग्य नहीं मानता कि मैं एक विद्वान् का आकलन करने की ध्रष्टता करूँ , मगर चूंकि प्रश्न सीधे मुझसे किया है अतः जवाब दे रहा हूँ..

    "जीवन के आसपास चलते हुए सरल और सहज भाव से कहे तुम्हारे शब्द, दिल में सीधे जगह बनाने में कामयाब हैं !"

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  32. @ गोल्डी ,
    आम लेख और भाव जो सहज सरलता से लिखे गए हों, हमेशा अपना स्पष्ट प्रभाव छोड़ते रहे हैं और रहेंगे ! मेरे विचार में, लिखने का तरीका हमेशा गौण रहेगा महत्व तो विचारों का ही है !

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  33. टर रम टू की क्षीण याद हमें भी है। लगभग उसी थीम पर अमेरिका में जनता टी वी पर एक कार्यक्रम आता था "साइबरचेज़" जिसके पक्षी डिजिट (साइबॉयड = तोते जैसा कुछ्) को देखकर हिसाबी याद आते थे।

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  34. bachpan ki yaad dila di...wo savere se "tarang" karykram dekha karte the..ugc ke programs etc.
    us samay to itni gehrai samaj nahi aati thi..
    aapke is lekh ne gehraai bhi samjhai aur bachpan bhi yaad dilaya..
    shukriyaaa... :)

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  35. प्रियवर सोमेश सक्सेना जी
    सस्नेह अभिवादन !

    टर रम टू याद है , समीर जी ने जानकारी को पूरा कर ही दिया ।

    … और भा गया आपका अंदज़ ! ज्ञान के लिए , प्रेरणा के लिए बड़े बड़े ग्रंथ ज़रूरी नहीं …
    स्रोत कहीं भी ढूंढ़ा जा सकता है …

    सुंदर पोस्ट !

    हार्दिक बधाई !

    मंगलकामनाएं !!

    ♥होली की अग्रिम शुभकामनाएं !!!♥


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  36. @ सतीश जी
    सतीश जी बहुत धन्यवाद इन शब्दों के लिए :) वैसे इस काबिल हूँ नहीं मैं.

    @ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन (अनुराग जी)
    अब अमेरिका के टी. वी. शोज़ के बारे में मैं क्या कह सकता हूँ. शुक्रिया टिप्पणी के लिए :)

    @ विनायक दुबे
    तुम्हारी टिप्पणी ने मुझे भी 'तरंग' याद दिला दिया. शुक्रिया.

    @ राजेन्द्र स्वर्णकार जी
    बहुत बहुत आभार. आपको भी होली की अग्रिम शुभकामनाएं.

    @ शिवा जी
    धन्यवाद आपका.

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  37. 'टर रम टू' तो याद नहीं.लेकिन आप आलेख बहुत ही रोचक लगा.
    गीत के बोल बहुत ही गहरे हैं.

    यहाँ तेरा तो तेरा ही है...
    और मेरा भी मेरा ही है...
    पर तेरा भी मेरा ही है...
    और मेरा भी तेरा ही है...
    तो तेरा क्या और मेरा क्या...?

    शुभ कामनाएं.

    जवाब देंहटाएं
  38. 'टर रम टू' का हर पात्र आज भी याद है...... ऐसी बाल सुलभ अभिव्यक्ति वाले कार्यक्रम बच्चों के लिए आवश्यक हैं। उस समय मेरी उम्र भी इस कार्यक्रम के आयुसमूह के बच्चों की नहीं थी पर मैं भी इसकी नियमित दर्शक हुआ करती थी..... बड़ी अलग सी बातें याद दिलाईं आपने... आभार

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  39. हम्म... टर राम टू देखा तो नहीं, पर सुना था उसके बारे में...
    और जैसा डॉ. शरद जी ने कहा हमें भी वही गीत याद आ गया...
    बधाई...

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  40. @ sagebob jee
    @ डॉ॰ मोनिका शर्मा जी
    @ पूजा जी
    आप सभी का हार्दिक आभार।

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  41. khaane ki thaali mein ek seemit maatra mein sabzi aur roti ho to swaadisht lagna swabhaavik hai. Chhappan bhog ka dher saara swaadisht bhojan mein woh swaad nahin aata.

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